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स्वप्न का वृत्तान्त सुनकर अत्यंत हर्षित हुआ। दोनों उठकर उपासनागृह में गए।
दोनों ने सामायिक अनुष्ठान किया।
व्रत की निर्विघ्न संपन्नता पर दोनों प्रसन्न थे । तपस्या का पारणा किया। पन्द्रह दिन बीत गए ।
बीसवें दिन सुनंदा को यह आभास हुआ कि उसने गर्भ धारण किया है माता की कल्पना सत्य होने लगी गर्भ बढ़ने लगा।
उसके
पांचवें महीने के पश्चात् तो सुनंदा के लावण्य की भी वृद्धि हुई वदन और नयन पर नूतन प्रकाश फैलने लगा।
आठ पुत्रों की माता को यदि कोई देखता तो वह यही कहता कि सेठानी प्रथम बार सगर्भा हुई है।
विचार स्थिर होने लगे।
दोहद भी सात्त्विक भाव वाले हो गए।
और नौवें मास के सातवें दिन सुनंदा ने सुखपूर्वक प्रसव किया
तेजपुंज
उस समय सेठ दुकान पर थे। उन्हें कन्यारत्न की प्राप्ति की बधाई दी गई सेठ ने तत्काल अन्न-वस्त्र आदि के दान की घोषणा की।
महाराजा उदयन को यह ज्ञात होते ही वे अपनी प्रियतमा देवी वासवदत्ता के साथ नगरसेठ के भवन पर आ पहुंचे।
कन्या इतनी रूपवती थी कि ऐसा रूप देवलोक में भी है या नहीं, यह प्रश्न
जैसा एक कन्यारत्न उसकी गोद में आया।
उभरता ।
वृद्ध स्त्रियों ने अनेक टूंगे किए, जिससे कि कन्या को नजर न लग जाए। एक शुभ दिन कन्या का नामकरण उत्सव रखा।
देवी सुनंदा के स्वप्न में देवी यमुना को तरंगलोला के रूप में देखा था, इसलिए निमित्तकों ने कन्या का नाम 'तरंगलोला' रखा।
यह नाम सबको पसंद आ गया।
तरंगलोला! तरंगवती! यमुना की लहर जैसी कन्या !
प्रतीक्षा की घड़ियां लंबी होती हैं, दिन बड़े प्रतीत होने लगते हैं । दुःख की रातें शतयामा बन जाती हैं और सुख की रातें पलभर में बीत जाती हैं।
दिवस गिनते-गिनते मास बीत गए । महीनों की गणना करते-करते वर्ष बीत
गए।
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तरंगलोला पांच वर्ष की हो गई। उसे कलाचार्य की पाठशाला में भेजा तरंगलोला अपने आठ भाइयों के बीच अकेली बहिन थी वह दिव्य कमलिनी के समान दीख रही थी /
पूर्वभव का अनुराग / ५९