Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 67
________________ को दूसरों के हाथों में सौंपती है...... तरंग! नारी मां का रूप है...... जगत् जननी है..... नारी जन्म से मृत्युपर्यन्त अपना सब कुछ दूसरों को देती रहती है..... नारी की यह परम्परा ही भारतीय संस्कृति की शोभा है नारी मात्र प्रजनन ही नहीं करती, संतान को संस्कार भी देती है... तू अपनी कल्पना में भी कभी निराशा के विचार मत लाना।' तरंगलोला मां की मंगल मुखाकृति की ओर देखने लगी। नगरसेठ अपने खंड में फर्श पर बिछी मखमली गद्दी पर बैठे थे। सामने एक स्वर्णपात्र में विविध पुष्प रखे हुए थे। उनकी दृष्टि सप्तपर्ण के कुसुम पर पड़ी। उसकी मनमोहक सुगंध पूरे खंड को सुवासित कर रही थी। सेठजी ने द्वार के पास खड़े दास की ओर देखकर कहा-'तरंग को बुला ला....' दास चला गया। सेठ ने सोचा कि इस विचित्र फूल को दिखाकर तरंगलोला की परीक्षा करनी है। कुछ ही समय के पश्चात् अपनी मां और एक परिचारिका के साथ तरंगलोला आ पहुंची। पिताजी को नमन कर बोली-'पिताश्री! क्या आज्ञा है?' 'मुझे यह फूल तुझे दिखाना था....यहां बैठ और मुझे बता कि यह फूल सुंदर क्यों है?' सेठ ने सप्तपर्ण का फूल तरंगलोला के हाथ में दिया। सुनंदा एक ओर बैठ गई। तरंगलोला तत्काल बोल पड़ी-'यह तो सप्तपर्ण का पुष्प है...' 'तो फिर इसका वर्ण यह क्यों है? देख, दो-चार अन्य पुष्प भी पड़े हैं।' तरंगलोला ने शांतभाव से कहा-'पिताश्री! यह सप्तपर्ण का फूल है, इसमें कोई संशय नहीं है... और इस फूल पर कमलपुष्पों के रजकण पड़े हुए हैं, अत: सप्तवर्ण के पुष्प का रंग पीला दीख रहा है।' 'पुत्री! कमलपुष्पों के रजकण इन फूलों का स्पर्श कैसे कर पाते हैं?' तरंगलोला बोली-'इस फूल का वृक्ष ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई कमलवन हो.... और कमलपुष्पों से मधु संचय करने के लिए गई हुई मधुमक्षिकाएं मधु लेकर लौटते समय इस वृक्ष के ऊपर से उड़कर जाती हों और उस समय मधुमक्षिकाओं के पंखों पर चिपटे रजःकण इन फूलों पर पड़े हों, ऐसा प्रतीत होता है। आप सूंघ कर देखें...... सप्तपर्ण की मादक सुवास के साथ कमलपुष्प की मधुर सुवास भी आएगी। दोनों का मिश्रण है। मानो मूल पुष्प की सुवास ही बदल गई हो।' ऋषभसेन पुत्री की ओर प्रसन्नदृष्टि से देखते हुए बोले-'तेरा अनुमान ठीक है...... अब तू योग्य हो गई है....... 'किस बात में?' पूर्वभव का अनुराग / ६५

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