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और सन-सन करते तीन बाण वहां आ लगे। जो निपुण सैनिक थे वे पांच व्यक्ति नीचे उतर कर बजरे की ओर आ रहे थे।
दरवाजा टूटे इससे पूर्व ही एक बाण रुद्रयश के दाएं हाथ में लगा दूसरे दो बाण दो व्यक्तियों के पैरों में लगे ..... दोनों साथी चीखते-चिल्लाते वहीं बैठ गए..... किन्तु रुद्रयश पलायन करने के लिए नदी में छलांग भरने का निर्णय कर रहा था कि इतने में ही चार सैनिक वहां आ पहुंचे......
नादान बालक..... न तो लड़ सके और न भाग सके, बेचारे.... तेरह तरुण पकड़े गए।
यह छोटा-सा संघर्ष पूरा हो उससे पूर्व ही नर्तकी के कुछेक लोग पांथशाला में आ पहुंचे।
यह संघर्ष देखकर रुद्रयश के बजरे वाला काना अपने बजरे के साथ वहां से छिटक गया। उसने वहां से पलायन करने में ही अपना भला देखा।
वह घटना कदंबघाट पर घटित हुई, इसलिए इन किशोर लुटेरों को वहां की हुकूमत के समक्ष पेश करना चाहिए, यह सोचा गया।
तेरह किशोरों को बांधकर पांथशाला में ले गए। आज के इस साहसिक कार्य का यह परिणाम होगा, यह कल्पना न रुद्रयश को थी और न उसके अन्य साथियों को। किन्तु रुद्रयश ने एक उपाय सोचा। सौभाग्यपुर के रक्षकों ने जब इनसे पूछताछ की तब रुद्रयश बोला-'नायकजी! हम सभी किशोर हैं....... हम लूटने या चोरी करने नहीं आए थे.....हमने देवी नीलमणी के नृत्य की बहुत प्रशंसा सुनी थी। अत: देवी को देखने आए थे.......'
'तुम सभी के पास तलवारें और लाठियां भी थीं।' नायक ने कहा।
'तलवार या लाठी रखना गुनाह नहीं है। यह हमने अपने बचाव के लिए रखा था। बाल-बुद्धि के कारण हमने यह साहस किया था। आप हमको छोड़
इन किशोरों को देखकर नीलमणी को दया आ गई, किन्तु नायक ने किसी को मुक्त नहीं किया.... देवी की भावना को सम्मान देते हुए सभी को भोजन कराया।
कुछ ही समय के पश्चात् कदंबगांव के दस रक्षक वहां आ पहुंचे।
सौभाग्यपुर के नायक ने तेरह डकैतों को उन्हें सौंपते हुए सारा घटनाचक्र बता दिया।
इस सारी प्रक्रिया में आधी रात बीत गई थी। नायक भी नगररक्षक के समक्ष हकीकत रखने के लिए वहीं रुक गया और वह तेरह की टोली के साथ गांव की ओर गया।
नीलमणी और रक्षकों के बजरे वाराणसी की ओर गतिमान हो गए।
४८ / पूर्वभव का अनुराग