________________
चारों ओर देखा और चपलता से दुकान के दोनों ताले एक लोहे की कील से खोल दिए। फिर वह भीतर घुस गया। साथ वाले चारों साथी अलग-अलग स्थानों में छुप गए।
रुद्रयश दुकान में प्रविष्ट हुआ। उसने दरवाजा बंद कर दिया मात्र अर्धघटिका में वह स्वर्णमुद्राओं से भरी एक थैली लेकर बाहर आ गया। दरवाजा बंद कर तालों को पूर्ववत् बंद कर, थैली को साथ ले पास वाली गली में चला
गया।
इस गली में एक साथी छिपा बैठा था।
उसी समय राजा का एक अश्वारोही रक्षक राजमार्ग से निकला ।
अश्वारोही के आगे गुजरने के बाद तीनों साथी वहीं एकत्रित हुए । रुद्रयश सही सलामत अपने चारों साथियों के साथ अपने सरदार के पास
आ गया।
सरदार तरुण का साहस देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने रुद्रयश को अपनी टोली में रख लिया।
परिताप और पश्चात्ताप की अग्नि से विशुद्ध होने की पिता की बात हवा में उड़ गई। बेचारे रुद्रयश को इसकी कल्पना भी कैसे हो ?
जो माता-पिता इस
उगते यौवन को उचित संरक्षण अपेक्षित होता है। तथ्य की उपेक्षा करते हैं, उन्हें अन्ततः पछताना पड़ता है।
सरदार ने जब रुद्रयश से पूछा कि तुमने चोरी कैसे की, तब रुद्रयश बोला- 'सरदारजी ! मैं ताला खोलने की कला जानता हूं" मात्र दो शलाकाओं से मैं सभी प्रकार के ताले खोल सकता हूं और पुनः बंद कर सकता हूं" मैं ताले खोलकर भीतर गया दुकान में अनेक थैलियां भरी पड़ी थीं मेरे से अधिक भार तो उठाया नहीं जा सकता जो साथी मेरे साथ आए थे, वे आपकी आज्ञा से बाहर ही रहकर मुझे देखते रहे। इसलिए मैं एक थैली उठाकर बाहर निकल गया और तालों को यथावत् बंद कर दिए । '
रुद्रयश! मुझे तो तुम्हारी परीक्षा करनी थी चोरी नहीं करनी है अन्यथा हम उसका सारा धन उठा लाते . तुम इस अड्डे में मस्ताई से रहो । और सूर्योदय होते-होते रुद्रयश टोली के साथ रवाना हो गया।
८. कन्यारत्न
नदी, नारी, कथा, पतंग आदि का वैविध्य आकर्षक होने पर भी विचित्र होता है। जैसे कोई नदी वक्र होती है, कोई सीधी होती है। कोई छिछली होती है, तो कोई अन्त:सलिला । कोई चंचल होती है तो कोई गंभीर । किसी का प्रवाह तीव्र वेग वाला होता है तो कोई शांत ऐसा ही वैविध्य होता है नारी का, वार्ता
पूर्वभव का अनुराग / ५३