Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 46
________________ में हमें सबको समान हिस्सा देना होगा... क्योंकि नीलमणी का एक दास भी गुप्तरूप से हमारे साथ रहेगा।' 'ठीक है.... अच्छा, अब हमें उपयुक्त तैयारी करनी चाहिए।' यह कहकर रुद्रयश ने इस लूट की स्वीकृति दे दी। चारों साथी उठे। एक ने रुद्रयश का हाथ पकड़ते हुए कहा-'रुद्र भाई! आज रात को रामलीला देखने जाना है न?' 'तुम सभी जाओ.... दो दिन तक मैं घर से नहीं निकल सकूँगा, क्योंकि पिताजी को थोड़ा विश्वास दिलाना होगा।' रुद्रयश ने कहा। 'पानागार का आनन्द! वासुकी के द्यूतगृह में .....' दूसरे साथी ने कहा। रुद्रयश चलते-चलते रुका और दो क्षण सोचकर बोला-रामलीला देखने के लिए तो मैं नहीं आ सकता, क्योंकि यह तो प्रात:काल तक चलती है..... पानागार में भी पीने की मर्यादा रखनी होगी। संभवत: मैं पिताजी को सुलाने के बाद, जिस किसी उपाय से वहां से छिटककर वासुकी के द्यूतगृह में अवश्य पहुंच जाऊंगा। तुम वहीं मेरी प्रतीक्षा करना।' तीनों मित्रों का साथ छोड़कर रुद्रयश अपने भवन की ओर चल पड़ा। घर आकर रुद्रयश ने पिताजी के साथ भोजन किया। आज चार-पांच पंडित भी अतिथि के रूप में आए हुए थे। सभी भोजन से निवृत्त होकर महापंडित के कमरे में गए। रुद्रयश अपने कमरे में आया और शय्या पर करवटें बदलने लगा। उसने सोचा, अतिथि यदि आज रात को यहीं रुकेंगे तो पिताजी के साथ शास्त्रचर्चा रातभर चलेगी....' तो फिर मैं वासुकी के द्यूतगृह में कैसे जा पाऊंगा? ___आपत्ति में मनुष्य को उपाय ढूंढने की तमन्ना जागती है। रुद्रयश भले ही तरुण हो, वह उपाय ढूंढने में निपुण था। उसने एक योजना बनाई। रात्रि के प्रथम प्रहर के बाद सोना और कमरे का द्वार भीतर से बंद कर लेना और पिछवाड़े की खिड़की से बाहर कूदकर निकल जाना और खिड़की को पुन: बंद कर देना और देर रात में लौटकर इसी खिड़की से भीतर कमरे में प्रवेश करना। ___ मन में यह उपाय उभरते ही उसकी समस्त चिन्ता दूर हो गई और वह सीधा पिताजी के खंड में गया। पांचों पंडित और महापंडित मुखवास ग्रहण कर सामान्य चर्चा कर रहे थे। माधव अतिथियों के लिए बिछौने बिछा रहा था। रुद्रयश ने सबसे पहले पिताजी के चरण छूए। फिर पांचों पंड़ितों के चरण छूए और एक ओर बैठ गया। महापंडित ने पुत्र की ओर देखकर कहा-रुद्र! ये पांचों विद्वान् उज्जयिनी से आए हैं. यहां लगभग पन्द्रह दिन रुकेंगे। ४४ / पूर्वभव का अनुराग

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