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इतने में ही.......।
वासरी की दृष्टि सामने की सघन झाड़ी की ओर गई और वह चौंक कर बोली.....' बाघ 'बाघ....' सामने देखो.... सामने के झुरमुट से आ रहा
सुदंत ने देखा...'मात्र दो सौ कदम दूर....' एक विकराल बाघ छुपतेछुपते आ रहा है.....।
भय मनुष्य की सारी मस्ती को लील लेता है। सुदंत ने शीघ्रता से धनुष-बाण उठाया और बाघ की ओर निशाना बांधा।
विकराल बाघ ने एक भयंकर गर्जना की..... उसकी दहाड़ से समूचा वनखंड प्रकंपित हो गया।
झूले पर बैठी वासरी भयभीत नेत्रों से बाघ की ओर देखती-देखती झूले पर खड़ी हो गई और झूले की डोर पर पैर रखकर देखने लगी। झूले की गति मंद हो चुकी थी।
और यमराज सदृश बाघ अब केवल पचास कदम दूर था। नौजवान पारधी सुदंत ने एक क्षण का भी विलंब किए बिना बाण छोड़ा।
पहला बाण बाघ के सिर में घुस गया। वन का यह विकराल पशु क्रोधातुर हो गया और उसने जोर से दहाड़ा। इतने में ही सुदंत का दूसरा तीर उसके देह में घुस गया था।
प्रचंड शक्ति से फेंके गए बाण से घायल बाघ पांच कदम पीछे हट गया।
और तब सुदंत द्वारा छोड़ा गया तीसरा बाण उसके वक्षस्थल को भेद कर जमीन पर आ गिरा।
बाघ नीचे गिर कर तड़फड़ाने लगा। झूला थम गया था।
सुदंत ने अपने भाल पर आए पसीने को पोंछते-पोंछते वासरी की ओर देखा।
वासरी भी अपने अचूक निशानेबाज पति को देख रही थी।
सुदंत वासरी को झूले से नीचे उतारते हुए बोला-'वासरी! इस बाघ के चर्म से मैं तुम्हारे लिए कंचुकी बनाऊंगा।'
वासरी ने सुदंत के वक्षस्थल पर सिर रखकर कहा–'चलो, अब हम झोंपड़ी में चलें।'
'क्यों, अभी तो मेरे लिए झूलना बाकी है' सुदंत ने हंसते हुए कहा। 'नहीं,... अब घर चलें।...' कहकर वासरी ने कटोरदान ले लिया।'
सुदंत बोला-'अब किसी प्रकार का भय नहीं रहा.... क्या वन-भोजन नहीं करना है?'
पूर्वभव का अनुराग / २५