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प्रसव किया। भवन में झालर की झणकार गूंजने लगी।
जन्मोत्सव मनाया गया। महापंडित ने बालक के कल्याण के निमित्त दान दिया।
महापंडित स्वयं ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता थे, फिर भी अपने संतान की जन्मपत्री उन्होंने अपने मित्र ज्योतिषी से बनवाई।
प्रसूतकाल पूरा हुआ। बालक का नाम रखा-रुद्रयश।
महापंडित बालक की जन्मपत्री देखकर विचारमग्न हो गए। बालक के छठे वर्ष में मातृ-वियोग के ग्रह प्रबल थे। एक योग ऐसा था कि या तो बालक राजा होगा या महान् योगी..... परन्तु पिता के घर का त्याग खून, चोरी लूट... विचार करते-करते महापंडित कांप उठा। कैसे क्रूर ग्रह!
पंडितजी को विचारमग्न देखकर सुशीला देवी बोली-'क्या देख रहे हैं?' 'रुद्रयश की कुंडली!' 'आप तो समर्थ ज्योतिपी हैं...... मेरे लाल का भविष्य कैसा है?'
'प्रिये! कुंडली बहुत विचित्र है..... वहुत खतरनाक है ...... माता के लिए पीड़ाकारक ग्रह है......."
सुशीला बोली-'संतान का योग माता के लिए कभी पीड़ाकारक नहीं होता। मेरा लाल मेरे आंगन में प्रकाश फैलाने आया है। इसको हंसते-खेलते और आप जैसा महापंडित बना देखकर मैं यहां से विदा हो जाऊं तो मेरे कोई न्यूनता नहीं रहेगी... परन्तु आप इतने गहरे विचारों में क्यों उतर रहे हैं? इसका भावी मुझे बताएं.......'
इसका जैसा नाम है वैसी ही कुंडली है। प्रिये! इस बालक का वर्तमान जीवन बहुत रौद्र होगा और भावी जीवन महान् होगा.... यह या तो किसी देश का राजा बनेगा अथवा...।
'कहते-कहते क्यों रुक गए?'
'अथवा महातेजस्वी महापुरुष होगा... किन्तु.....' कहते-कहते महापंडित विचारमग्न हो गए।
सुशीला ने गोद में सो गए बालक के सिर पर स्नेहिल हाथ फेरते हुए कहा-'फिर विचार में खो गए। क्या इसका आयुष्य बल......'
'पूर्ण है....... मुझे यह आश्चर्य हो रहा है कि उत्तरावस्था की ऐसी महान् कुंडली पूर्वावस्था के इतने अवरोधों से कैसे भरी पड़ी है! प्रिये! यह सच है, विधाता के लेख को कोई नहीं पलट सकता। अनेक बार मानवी-विज्ञान यहां वामन हो जाता है।' यह कहकर पंडितजी ने मां की गोद में सो रहे बच्चे की ओर देखा...' प्रतीत हो रहा था मानो पंडितजी पुत्र के भाग्य को परखने के लिए व्यथित हो रहे हैं।
पूर्वभव का अनुराग / ३५