Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 11
________________ गर्भ के लिए भंडार समान कलावती ने गर्भ धारण किया। प्रायः कर पुत्री पहले अपने पिता के घर ही प्रसूति करती है। इसलिए पिता विजयराजा ने कलावती को बुलाने के लिए माननीय पुरुषों को भेजा। अपनी बहन के लिए जयसेनकुमार ने अपने हाथों के दोनों कडे भेजे और राजा ने भेंट के रूप में दिव्यवस्त्र दिये। उत्सुकतावाले वे सभी विश्वसनीय पुरुष संध्यासमय शंखपुर आये और राजा के द्वारा प्रदत्त महल में रुके। इसी बीच कलावती किसी काम से वहाँ आयी। तब उन्होंने कुमार के द्वारा दिये गये हाथ के कडों को भेंट किया। प्रातः राजा को दिखाऊँगी, इस प्रकार कहकर कलावती हर्ष सहित अपने महल की ओर चली गई। अत्यंत हर्ष से पुलकित कलावती ने, सखिजन के समक्ष उन दोनों कडों को धारण किए। जब कलावती खुद को निहारने लगी, तब कुतुहलवश राजा उसके महल के समीप आया। हर्ष से कोलाहल व्याप्त होने पर, राजा सावधान होकर उनकी बातें सुनने लगा। अपनी मालकीन के हाथों में कडे देखकर, सखी भी पूछने लगी - देवी! ये आभूषण किसने भेजे हैं? कलावती भी कहने लगी-जिसके हृदय में मैं रही हुई हूँ और जो मेरे मन में रहा हुआ है उसने भेजे हैं। इन कडों को देखने से मैंने साक्षात् ही इसके मालिक को देख लिया है। भुजाओं में धारण करने से, मैंने साक्षात् ही उसकी चेतना से आलिंगन कर लिया है। सखि! मेरा मन क्षणमात्र के लिए भी उसको भूला नहीं पा रहा है। नाम रहित केवल कटाक्ष वचनों को सुनकर, शंख राजा सैंकडों कुविकल्प और ईर्ष्या के वश हुआ। राजा सोचने लगा-इसके चित्त को आह्लादित करनेवाला कोई प्रेमी है। और इसने मुझे कपटीप्रेम से वश किया है। मैं तो केवल इसके विनोद के लिए ही हूँ। वंश की शत्रु और कुलटा इसे मैं शीघ्र ही मार डालूं अथवा इसके प्रेमी को मार डालूं। अहो! अकार्य करने में तत्पर, धृष्टता से व्याप्त, हाथी के कान के समान चंचल चित्त नारियों में दिखायी देता है! शंख राजा ने क्रोध से उग्र स्वभाव को धारण किया। उसने बिन विचारे, रात्रि के समय निष्करुण नामक सुभट को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया-देवी कलावती को शीघ्र ही निर्जन वन में छोड़ देना। किसी को मालूम न पड़े, वैसे इस कार्य को करना। सुभट ने रथ तैयार किया। कलावती के पास जाकर कहने लगाहाथी पर बैठकर राजा क्रीड़ा करने कुसुम उद्यान गये हैं। आपको बुलाने के लिए राजा ने मुझे आदेश दिया है। मैं आपको वहाँ छोड़ देता हूँ। आप शीघ्र ही रथ में बैठे। सरलता के कारण, कलावती भी रथ में बैठ गयी। निष्करुण सुभट ने घोड़ों को दौड़ाये। देवी ने पूछा-राजा कितनी दूरी पर हैं? सुभट ने कहा-आगे हैं। सामने भयंकर अटवी शुरु हो गयी थी और रात भी विशेष बीत गयी थी! राजा को नहीं देखने पर देवी अत्यन्त आकुलित होने लगी और सुभट से पूछा-हा! हा! यह तो

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