Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 9
________________ राजन्! अब देवपूजन का समय हो गया है। राजा ने भी सदस्यों को विदाकर आनंदपूर्वक देवपूजा की। राजा भोजनकर पलंग पर लेट गया और सोचने लगाइस विधाता का कल्याण हो, जिसने कलावती का निर्माण किया है। पक्षियों के समान पंख से युक्त अथवा आकाश गमन में समर्थ पराक्रम से युक्त जो मनुष्य नहीं बनाये गये हैं, वह अच्छा नहीं हुआ है। जहाँ अपने प्रिय लोग रहते हैं, पक्षी वहाँ शीघ्र ही चलें जाते हैं, उससे अहो! मैं मानता हूँ कि मानवों से भी वे पक्षी श्रेष्ठ हैं। अहो! तो क्या धन्यमय महोदय होनेवाला है, जब मैं स्वयं अपने हाथ से इस प्रेयसी का हाथ ग्रहण करूँगा। इस प्रकार के विचार को, उल्लेख नहीं करने में विशेष उद्विग्नता धारण करनेवाले राजा ने पुनः प्रातःसमय होने पर, शीघ्र ही राजसभा को अलंकृत किया। चारों ओर से सभी सामन्त लोग, राजा की सेवा में उपस्थित हो गये। वह सभा इन्द्रसभा की तरह स्पष्टतया शोभ रही थी। इसी बीच बड़े श्वासों से अपने कंठ को रोके कोई गुप्तचर पुरुष वहाँ आया और शंकारहित शंखराजा से निवेदन करने लगा-देव! आपके देश की सीमा में कोई महासेना आयी हुयी है। और दस दिशायें भी तूर्यवाजिंत्र के शब्द से पूरे जा रहे हैं। जल की इच्छा से, संचार करते सुभटों के द्वारा सभी जलाशय कलुषित आशयवाले दुर्जनों के समान तत्क्षण ही कलुषित कर दिये गये हैं। इस प्रकार सुनकर, राजा अन्य कार्यों को भूल गया और उसने भ्रूकुटी चढ़ाकर भयंकर आकृति धारण की। उग्र रोष से सुभटों से कहने लगा-सैनिकों! प्रयाण का नगारा बजाओ, कोश से समग्र युद्ध की सामग्री बहार निकालो और शीघ्रता करो। सैनिकों ने भी वैसा ही किया। जब राजा युद्ध के लिए प्रयाण करने की इच्छावाला हुआ, तब दत्त आकर आश्चर्य सहित शंखराजा से विज्ञप्ति करने लगा - अरे! व्यर्थ ही आप युद्ध की तैयारी क्यों कर रहे हो? ये कोई दूसरे नहीं है, किन्तु चित्रपट को देखकर, जिस पर आपका मन अत्यंत रागी बन गया था, वह कला से युक्त कलावती अपने बड़े भाई जयसेनकुमार से युक्त आपको वरने के लिए आ रही है। इस प्रकार के उसके वचन से सहसा ही अमृतरस से सिंचित के समान, राजा ने अपने चित्त का संताप दूरकर, उत्साह सहित दत्त से कहने लगा-क्या यह आश्चर्यकारी घटना इतनी शीघ्र बन गयी है? देव के अद्भुत पुण्य समूह से यहाँ क्या नहीं हो सकता है? इसी बीच मतिसार नामक मंत्री शंखराजा को कहने लगा - राजन्! यह दत्त स्वामी भक्त, कृतज्ञ और अचिंत्य गुणवैभव से युक्त है। मैं मानता हूँ कि गंभीरता के कारण, यह स्पष्ट नहीं बोल रहा है किन्तु विजयराजा के सामने अपने स्वामी के गुण की उत्कृष्टता के बारे में वर्णन किया है। उससे यह. कलावती आपको नहीं देखने पर भी, आप पर रागवाली बनी है। पिता विजयराजा ने

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