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गाया संख्या
विषय
पृष्ठ संख्या १३५/१ बहु-प्रदेश प्रचय को काय कहते हैं
ये द्रव्य लोकाकाश में रहते हैं, सर्व पदार्थ निश्चय नय से अपने स्वरूप में ठहरे ३३६.-११ हुए हैं व्यवहार नय से लोकाकाश में ठहरे हुए हैं । अवगाहण शक्ति के कारण
असंख्यात प्रदेशों में अनन्त द्रव्य रहते हैं जिस प्रकार आकाश के प्रदेश हैं उसी प्रकार अन्य द्रव्यों के प्रदेश हैं
३४१-४३ १३८ कालाणु अप्रदेशी हैं १३६ कालद्रव्य तथा समयरूप पर्याय की सिद्धि
३४५-४६ १४० आकाश के प्रदेश का लक्षण
३४६-५१ आकाश यदि द्रव्यों के प्रदेश समूह को तिर्यप्रचय और काल के समय समूह को ऊर्ध्वप्रचय कहते हैं
३५१-५४ १४२ समय-सन्तान रूप ऊध्र्वप्रचय का अन्वयी रूप से आधारभूत काल द्रव्य को सिद्ध
करते हैं, एक समय में एक वृत्त्यंश (पर्याय) से दो विरोधी धर्म नहीं होते ३५४-५७ १४३ सर्व वृत्त्यंशों में कालद्रव्य के उत्पाद व्यय ध्रौव्यत्व है ।
३५७-५८ १४४ काल द्रव्य एक प्रदेशी है।
३५१-६३
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जीव द्रव्य का विशेष कथन जो जानता है वह जीव है संसार अवस्था में चार प्राणों से संयुक्त है १४६ इन्द्रिय, बल, आयु श्वसोच्छ्वास ये चार प्राण हैं
३६५-६६ १४/१ प्राण के दस भेद
व्युत्पत्ति के द्वारा प्राणों को जीवत्व का हेतु तथा पौद्गलिकत्व की सिद्धि ३६२-६८ १४८-४९ मोहादिक कर्मों से बंधा हुआ जीव प्राणों को धारण करता हुआ कम फल
भोगता हुआ अन्य कर्मों से बंधता है जब तक देहादिक से ममत्व को नहीं छोड़ता तब तक कर्मों से मलिन आत्मा पूनः पुनः अन्य प्राणों को धारण करता है
३७१-७२ जो इन्द्रियादिक पर विजय करके उपयोगमयी आत्मा को ध्याता है वह कर्म मल से लिप्त नहीं होता तथा उसके प्राणों का सम्बन्ध भी नहीं होता
३७३-७५ १५२ यद्यपि जीव का स्वरूप अस्तित्व भिन्न है तथापि पुद्गलद्रव्य के संयोग से नरनारकादि तथा संस्थान आदि अनेक पर्यायें होती है
३७५-७७ १५३ नामकर्मोदय के कारण जीव की मनुष्य, नारक, तिर्यंच, देव तथा संस्थानादि अनेक पर्याय होती हैं
२७७.-.७८ १५४ जो अपने स्वभाव में तन्मय ज्ञानी जीव द्रव्य गुण पर्याय से तीन प्रकार के
द्रव्य स्वभाव को जानता है वह अन्य द्रव्य में मोहित नहीं होता ज्ञान सविकल्प तथा साकार है और दर्शन निर्विकल्प तथा निराकार है
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३७८-८०