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{ २१ ) गाथा संख्या
विषय
पृष्ठ संख्या अहंकार तथा ममकार का लक्षण
२२१-२२ द्रव्य के तीन लक्षण
२२२.२३ अनेक प्रकार के गुण व पर्यायों से और उत्पाद व्यय ध्रौव्य से जो द्रव्य का स्वरूप अस्तित्व है, वह द्रव्य का स्वभाव है
२२७ -३३ सर्व द्रव्यों का सत् अर्थात् सादृश्य अस्तित्व अथवा महासत्ता लक्षण है २३४-३६ द्रव्य स्वभाव से सिद्ध है और सत् है । जो ऐसा नहीं मानता वह परसमय है द्रव्य से सत्ता भिन्न नहीं है तथा एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य की उत्पत्ति नहीं होती २३५-४० उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक होने पर भी द्रव्य सत् है
२४०-४४ उत्पाद, व्यय, धौव्य परस्पर अविनाभावी हैं
२४४-४० उत्पाद, व्यय, धौव्य ये द्रध्यस्वरूप हैं द्रव्य से पृथक पदार्थ नहीं हैं
२४०-५१ उत्पाद व्यय धौव्य एक ही समय में होते हैं समय भेद नहीं है
२५१-५४ १०३ द्रव्य की अन्य पर्याय त्पन्न होती हैं अन्य पर्याय नष्ट होती हैं किन्तु द्रव्य न नष्ट होता है और न उत्पन्न होता है
२५५-५७ गुण पर्याय की मुख्यता से द्रव्य के उत्पाद व्यय धोव्य का कथन
२५७-५६ युक्ति द्वारा सत्ता और द्रब्य के अभेद का कथन
२५६-६२ विभक्त प्रदेशत्व पृथक्त्व है और अतद्भाव अन्यत्व है १०७ अतद्भाव (अन्यत्व) का विशेष कथन
२६५-६८ १०८ अतद्भाव का लक्षण सर्वथा अभाव नहीं है अथवा गुण-गणी में प्रदेश भेद नहीं है संज्ञादि का भेद ही अतद्भाव है
२६-७१ १०६ सत्ता और द्रव्य का गुण-गुणी भाव
२७२-७४ ११० गण और पर्यायों से द्रव्य का अभेद है
२७४-७५ १११ द्रव्याथिकनय की अपेक्षा सत् का उत्पाद और पर्यायाथिकनय की अपेक्षा असत् का उत्पाद होता है
२७५-७६ अनन्यत्व के द्वारा सत् का उत्पाद सिद्ध होता है
२८४-८१ अन्यत्व के द्वारा असत् का उत्पाद सिद्ध होता है द्रव्य का अपनी पर्यायों के साथ द्रव्याथिकनय से अनन्यत्व है और पर्यायाथिक नय से अन्यत्व है ऐसा अनेकान्त है
२८३-८५ सप्तभंगी का कथन
३८६-६० संसारी जीव के रागादि विभाव क्रिया स्वभाव से होती है जिसका फल मनुष्यादि पर्याय हैं जो अनित्य हैं। उत्कृष्ट वीतरागधर्म मनुष्यादि पर्याय रूप फल को नहीं देता।
३६७-६३ नामकर्म जीव के स्वभाव का पराभव करके जीव को मनुष्य, तिर्यंच, नारक अथवा देव रूप करता है।
२६४-६५
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