Book Title: Pravachansara
Author(s): Kundkundacharya, Shreyans Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 16
________________ ८२ ( २० ) गाथा संख्या विषय पृष्ठ संख्या ८१ सम्यग्दर्शन हो जाने पर भी यदि राग द्वेष को त्यागता है तो शुद्धात्मा को प्राप्त कर लेता है वीरग चाहि काम शुद्धात्मानुभूति १८३-५ सम्यग्दर्शन पूर्वक चारित्र धारणा करना ही मोक्षमार्ग है १५-१६ रत्नत्रय के आराधक ही दान पूजा व नमस्कार के योग्य होते हैं १८७ द्रव्यादिक में जो मूढभाव है, वह मोह है। मोही राग द्वेष को प्राप्त होता है १५८-८६ मोह राग द्वेष से जीव के कर्म बन्ध होता है । भाव मोक्ष का लक्षण शुद्धोपयोग है और कर्मों का विश्लेषण हो जाना द्रव्य मोक्ष है १८६-१९१ पदार्थो का अन्यथा ग्रहण, दया का अभाव तथा विषयों में राग द्वेष ये तीनों मोह के चिह्न हैं १६१-१२ करुणा अथवा दया जीव का स्वभाव है शास्त्र का अध्ययन करना चाहिये क्योंकि उससे पदाथों का ज्ञान होता है और पदार्थों के जानने वाले के मोह समूह नष्ट हो जाता है १६३-६६ द्रव्य गुण और पर्याय इन तीनों की अर्थ संज्ञा है और अपने गुण और पर्यायों का आधार द्रव्य है १६६-६८ जिन उपदेश को पाकर जो राग द्वेष मोह को हनता है वह शीघ्र ही सब दुःखों से छुटकारा पाता है १९६ ०१ भेदविज्ञान से मोह का क्षय होता है २०१-०२ स्व पर का भेदविज्ञान आगम से होता है २०२.०४ जो जिनेन्द्र कथित पदार्थों का श्रद्धान नहीं करता वह श्रमण नहीं है २०५-०६ जो सम्यग्दृष्टि आगम में कुशल है और वीतरागचारित्र में आरुढ़ है, वह श्रमण धर्म हो है २०७-१० यतिवर की भक्ति से तथा गणानुराग भाव से भव्य को धर्म का लाभ होता है २१० १२९ पुण्य से उत्तम भव मिलते हैं तथा सम्यग्दृष्टि का पुण्य मोक्ष का कारण है। ज्ञेयतत्व प्रज्ञापन नामक मितीय अधिकार पदार्थ द्रव्य स्वरूप हैं और द्रव्य गुणात्मक हैं। द्रव्य तथा गुणों से पर्यायें होती हैं । पर्यायमूट परसमय है द्रव्य गुण और पर्यायों का समूह है। समानजातीय और असमानजातीय दो प्रकार की द्रव्य पर्यायें हैं। स्वभाव और विभाव के भेद से गुणपर्याय दो प्रकार की हैं २१२-१५ साधु को नमस्कार करके सम्यग्दर्शन का कथन करने की प्रतिज्ञा २१५-१६ जो विभावपर्याय में लीन है, वह परसमय है, जो आत्म स्वभाव में स्थित है, वह स्वसमय है। २१६-२१ २११

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