Book Title: Pravachansara
Author(s): Kundkundacharya, Shreyans Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ ४२ १०१ ( १८ ) गाथा संख्या विषय पृष्ठ संख्या जो ज्ञान ज्ञेयों को विकल्प रूप से जानता है, वह क्षायिकज्ञान नहीं है ४३ उदयागत कम अपना फल देते हैं। मोह के उदय से बन्ध्र होता है, ज्ञान से बन्ध नहीं होता ११-१०० केवली की क्रिया बन्ध का कारण नहीं है अरहन्त अवस्था पुण्य का फल है । उनको क्रिया औदयिकी होने पर भी मोहादि रहित होने के कारण बन्ध नहीं करती किन्तु कर्मों का क्षय करती है। मोह राग द्वेष बन्ध के कारण हैं मात्र कर्मोदय बन्ध का कारण नहीं है। १०२-०४ यदि कोपाधि के निमित्त से यदि जीव शुभाशुभ रूप न परिणमे तो संसार का अभाव हो जायेगा। १०५-०४ जो तत्कालिक और अतत्कालिक विचित्र तथा विषम समस्त पदार्थों को जानता है वह क्षायिकज्ञान है। १०७-०६ जो सबको नहीं जानता, वह एक को नहीं जानता १०६-१२ जो एक को नहीं जानता वह सबको नहीं जानता। छद्मस्थ भी परोक्षरूप से केवलज्ञान के विषय को जानता है। जो कम से जानता है वह सर्वज्ञ नहीं हो सकता । ११६-१७ युगपत् जानने वाला ही सर्वज्ञ हो सकता है । ११७-१६ जानी के ज्ञप्तिक्रिया का सदभाव होने पर भी बन्ध नहीं होता १२०-२२ केवलज्ञानी ज्ञेयों को जानता हुआ भी ज्ञेय रूप न तो परिणमन करता है और न उनको ग्रहण करता है और न उनको उत्पन्न करता है इसलिये अबन्धक है १२२-२३ सुख-अधिकार ५३ __ एक ज्ञान व सुख मूर्त व इन्द्रिय जनित है और दूसरा ज्ञान व सुख अमुर्त तथा अतीन्द्रिय है। अतीन्द्रियसुख का साधनभूत अतीन्द्रियज्ञान का स्वरूप १२६-२८ इन्द्रियसुख का साधनभूत इन्द्रियज्ञान हेय है क्योंकि जितने अंशों में अज्ञान है उतने अंशों में खेद है। १२८-३२ इन्द्रियाँ अपने विषयों में युगपत्-प्रवृत्ति नहीं करती इसलिये इन्द्रिय ज्ञान सुख का कारण न होने से हेय है और केवलज्ञान सुख का उपादान कारण होने से उपादेय है इन्द्रियज्ञान प्रत्यक्ष नहीं होता है। परोक्ष और प्रत्यक्ष का लक्षण १३४-३५ केवल ज्ञान ही सुख रूप है अनन्त पदार्थों को जानते हुए भी केवलज्ञानी के खेद का अभाव है, क्योंकि खेद का कारण धातिकर्म हैं १३८-४१

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 688