Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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कर पाजीविका करना विद्या कम है। ५. व्यापार करना वाणिज्य कर्म है और ६. कुशलता से जीविका चलाना शिल्प कर्म है। इसी समय भगवान ने तीन वर्ण भी प्रकट किये....जो शस्त्र धारण कर स्व-पर रक्षण में लगे या जीविका चलाने लगे चे 'क्षत्रिय हए । जो खेती, ब्यापार, पशुपालनादि से जीविका करने वाले थे वे वैश्य और जो क्षत्रिय और वैश्यों की सेवा सुश्रुषा कर जीवन निर्वाह करने वाले थे वे शूद्र कहे जाने लगे। इस प्रकार १. क्षत्रिय, २. वैश्य और ३. शूद्र ये तीन वर्ण स्थापित या प्रकट किये । इसी प्रकार जाति व्यवस्था निर्धारित कर अपनी-अपनो जाति में विवाहादि सम्बन्ध करने की प्रथा निर्धारित की । प्रजा प्रभु की आजानुसार अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करती और प्रभु विदेह क्षेत्र की पद्धति के अनुसार अनादि परम्परा के अनुरूप सनातन, पाप-रहित, समीचीन मार्ग निर्देशन करते । इस प्रकार प्रथम युग का प्रारम्भ प्रथम ब्रह्मा श्री आदीश्वर महाराज ने किया । इसका नाम 'कृतयुग' भी है । यह दिन प्राषाढ़ कृष्णा पडिवा का दिन था । इस प्रकार षट्कर्मों में संलग्न हो प्रजा सुखी सम्पन्न और धर्म कार्य संलग्न हो गई । भगवान द्वारा निर्दिष्ट मार्ग से प्रजा को अपूर्व प्रानन्द हा, वे भगवान को ही राजा मानने लगे । अब सब सुबुद्ध हो गये और वृषभ स्वामी हमारे नायक हो इसको इच्छा करने लगे।
प्रभु का राज्याभिषेक
पिता अपने योग्य पुत्र की राज्याधिपत्य प्रदान करता है। परन्तु भगवान का प्रथम इन्द्र ने सविभूति राज्याभिषेक किया। प्रजा जीवन सामग्री पाकर फली न समायी 1 धर्म नीतिपूर्वक अपने कर्तव्य में जुट गई तो भी उनका नियंता कोई होना ही चाहिए इसलिए राजा प्रजा
और इन्द्र ने विचार-विमर्श कर वषभ स्वामी को राजपदासीन करने का निश्चय किया । स्वर्ग लोक और भूलोक दोनों ही प्रानन्द से भर मये । नाना प्रकार की सज्जा, अनेकों प्रकार के बाजे, विविध रस भरे नत्य और मंगलगान होने लगे । अयोध्या तो नवोढ़ा-सी सज गई। चारों ओर आमोद, प्रमोद, हर्ष, उल्लास सजीव हो उठा। अप्सराएँ चमर हुला रही थीं।
प्रथम ही देवगण गंगा, सिन्धु नदियों के उदय स्थान से तीर्थजल लाए । सुवर्णघट भर कर सजाये । मंगाकुण्ड, सिन्धुकुण्ड, नंदीश्वर द्वीप