Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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मोग निरोप समस्त पार्य-खण्ड में धर्म देशना प्रचार कर प्रायु का १ मास शेष रहने पर उन्होंने योग निरोध किया । देशना बन्द हो गई । समवशरण भी क्यों रहता । भगवान श्री सम्मेद शिखर पर्वत की 'ज्ञानपर कूद पर आ विराजे । यहाँ प्रतिमायोग धारण कर शेष अघातिया कर्मों को भी चूर-दूर किया । खीसरे शुक्ल ध्यान का आश्रय लिया। चौदहवें गुरा स्थान में अउ ऋल पञ्च लवक्षर उच्चारण मात्र काल पर्यन्त रहकर चतुर्थ शुक्ल ध्यान के आश्रय से मुक्त हुए। इस कूट के दर्शन मात्र से १ कोटि उपवास का फल होता है। मोक्षकल्याणक महोत्सव ---
बैशाख शुक्ला प्रतिपदा के दिन कृतिका नक्षत्र में रात्रि के पूर्व भाग में मुक्तिधाम में जा विराजे । आपके साथ-साथ १००० मुनिराजों ने सिद्ध पद प्राप्त किया । उसी समय चरिणकाय देवगण स्वपरिवार सहित आये, अग्नि कूमार जाति के देवों ने अपने मुकूट से अग्नि उत्पन्न कर अग्नि संस्कार अंतिम क्रिया की। इन्द्र ने प्रष्ट प्रकार दिव्य दक्ष्यों से निर्वाण कल्याणक पूजा की एवं नाना रत्नों के द्वीपों से उत्सव मनाया। पूजा-विधान कर अपने-अपने स्थान चले गये । विशेष
भगवान कुन्थुनाथ स्वामी ३ पदों के धारी थे । १. तीर्थपुर २. चक्रवर्ती और ३. कामदेव इनका चिह्न बकरा का है।
चिह्न
बकरा
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