Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रावण शुक्ला ६ को बारात रवाना हुयी । नेमि कुमार का रथ . सबसे प्रागे था । पशु-पक्षियों के बाड़े के पास रथ जा पहुंचा, कुमार दूल्हा ने कारण पूछा तो पता चला कि कृष्ण महाराज ने उनके विवाह में आने वाले क्षत्रियों को मांसाहार के लिए एकत्रित कराये हैं । सुनते ही उनको अन्तरात्मा थरा थरा उठी। गात कांपने लगा। उन्होंने अवधि से कृष्ण की कलुषित भावना पहिचानी । क्षणिक राज वैभव के लिए, विषयभोगों को यह निरोह हत्या ! धिक्कार है इस अमानुषिक क्रिया को । मेरे लिए हत्या, निरपराध, जीवों का घात । हाय-हाय यह कैसा अनाचार है, अत्याचार है । मैं पल भर भी यहाँ नहीं ठहर सकता? उन्होंने पीघ्र बाढा खुलवाया। सभी पशु पक्षियों को मुक्त किया और स्वयं मुक्त होने का निश्चय किया। उनके सुदृढ़ वैराग्य को सुन उग्रसेन, समुद्र विजय, बलदेव, कृष्णा प्रादि आये। किन्तु क्या होता? मच्छरों का समूह क्या पर्वत को चला सकता है ? . उसी समय वहीं लौकान्तिक देव प्राये । वैराग्य पोषण कर चले गये।
. निष्कमरा कल्याणक ...
जमागद में चारों ओर हाहाकार मच गया। क्या हमा? क्यों हुमा ? कैसे हुआ ? आदि प्रश्नोत्तरों की गूंज होने लगी। इधर सौधर्मेन्द्र सपरिवार प्राया। वहीं प्रभु का दीक्षाभिषेक किया । वस्त्रालंकार पहिनाये और "उत्तर कुरु” नामकी पालकी में सवार कर "सहस्राम" वन में ले गये। वहाँ उन वीतराग भाव में प्राप्यायित प्रभु ने 'नमः सिद्धेभ्यः" कर सिद्ध साक्षो में श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन चित्रा नक्षत्र में सायंकाल तेला का नियम लेकर परम सूखकारी सर्वोत्तम दैगम्बरी दीक्षा धारण को । पंचमुष्ठी लौंच किया। निश्शेष वाह्याम्यतर परिग्रह का त्याग किया और प्रात्मध्यान में लीन हो गये । आपके साथ १००० राजाओं ने दीक्षा धारक्षा की। उसी समय उन्हें मनः पर्यय ज्ञान उत्पन्न हुआ।
अत्यन्त सुकुमारी, लाडली. विशुद्ध परिणाम युत कुमारी राजुल ने भी यह कह कर कि, "श्रेष्ठ कुलवन्ती कुमारी का एक ही वर होता है, मन से जिसे पति रूप स्वीकार कर लिया वही पति होता है।" प्रायिका दीक्षा धारण कर ली।