Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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अहंकार पर्वत चूर-चूर हो गया। विनीत भाव से गंधकुटी में प्रविष्ट, नमस्कार कर मनुष्यों के कोठे में बैठा । दीक्षा की याचना की । मुनि हो
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मनः पर्यवज्ञान प्राप्त कर प्रथम मणधार, बने, और भगवान की दिव्यस्वनि प्रारम्भ हबीगो वाणी को झेला इसलिए इसका नाम.मीतम प्रसिद्ध हृया। क्रमशः १० गणधर और हुए. ... ... .... . . .
। इनके समवशरण में ७१० सामान्यकेवली, ३०० श्रुतकेवली,६६०० उपाध्याय, ५० मनः पर्ययज्ञानो - विक्रिया ऋद्धिधारी,. १३.००