Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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देखते ही दर्शन मात्र से शंका दूर हो गई। उन्होंने बड़ी भक्ति से उनका 'सम्मति' सार्थक नाम प्रसिद्ध किया ।
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क्रमश: आयु के ३० वर्ष बीत गये। शरीर में यौवन के चिन्ह विकसित होने लगे। यह देख महाराज सिद्धार्थ ने कहा, "प्रिय पुत्र, तुम पूर्ण युवा हो, तुम्हारी गम्भीर मुद्रा, विशाल नयन, उन्नत ललाट, प्रशान्त वदन, मन्द मुस्कान, चतुर वाणी, विस्तृत वक्षस्थल आदि तुम्हारे महापुरुषत्व का द्योतन कर रहे हैं । अब तुम्हारा यह समय राज-काज संभालने का है। इसलिए मैं आपका विवाह कर राज्यमुक्त हो आत्म साधना करना चाहता हूँ। "पिता के वचन सुनते ही कुमार बर्द्धमान का प्रफुल्ल चेहरा कुम्हला गया । वे चौके । कुछ गम्भीरता के साथ, संयंत वाणी में उत्तर दिया, “पिताजी, ग्राप क्या कह रहे हैं, जिस जंजाल से श्राप बचना चाहते हैं उसमें मुझे क्यों उलझाने की चेष्टा करते हैं। मैं इन कंटों में कभी नहीं फंस सकता हूँ। मेरा जीवन बहुत छोटा है
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