Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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फल पूछा । उन्होंने स्वर्ग मोक्ष की प्राप्ति और संसार दुःखों का नाश फल बतलाया । स्वयं भी वैराग्य भाव से युक्त हुए। मैं तीर्थङ्कर पदाधिकारी होकर भी इन भोगों में पडा है, क्या उचित है ? इस प्रकार चितवन करने लगे। अब प्रात्म साधना करना चाहिए, यह दृढ़ निश्चय किया । उसी समय लौकान्तिक देव पाये और वैराग्य भावों की अनुमोदना कर अपने स्थान को चले गये। भगवान कुन्धनाथ का माण्डलिक राजा का जिलना काल था उतना ही चक्रवतित्व काल है। इन्हें पूर्वभव का स्मरण होने से वैराग्य उत्पन्न हुमा ।
निष्क्रमण कल्याणक
__ महाराजा कुन्थुनाथ ने अपने योग्य पूत्र को राज्यभार अर्पण किया। उसी समय इन्द्र, देव देवियों के समूह के साथ प्राया । प्रथम दीक्षाभिषेक किया । वस्त्रालंकारों से सुसज्जित किया। तथा 'विजया' नामक पालकी में पास होने की प्रार्थना की। भगवान पल्यकी में प्रासीन हुए अनुक्रम से मनुष्यों ने पालकी डोयी पुन: देवगण आकाश मार्ग से सहेतुक वन में जा पहुंचे।
.. रत्नचूर्ण से चचित शिला पर विराजमान हो "नमः सिद्धेभ्यः" के साथ उभय परिग्रह का सर्वथा त्याग कर पूर्ण निर्ग्रन्थ हो गये । पंचमुष्ठी लौंच किया सायंकाल दीक्षा ली। तेला का व्रत धारण कर ध्यानारूढ हुए। उसी समय चतुर्थ मनः पर्यय ज्ञान प्रकट हो गया। प्रापके साथ एक हजार राजाओं ने दीक्षा धारण की । इन्द्र ने दीक्षाकल्याणक महोत्सव मनाया। प्रभु अंसख्यात गुरग श्रेणी कर्म निर्जरा करने लगे।
पारणा
३ दिन पूर्ण हुए । पारस्सा के निमित्त मुनि श्रेष्ठ ने वन से प्रयाण किया । नातिमन्द ईर्थापथ शुद्धि पूर्वक वे चलते हुए हस्तिनागपुर नगरी में पधारे। राजा धर्ममित्र ने पुण्य वृद्धि करते हुए सात गुणों सहित परम विनय से पडगाहन क्रिया । नवधा भक्ति से आहार दान दिया। पञ्चाश्चर्य हुए। भगवान पाहार लेकर पुनः मौन से कठोर साधना में तल्लीन हो गये।
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