Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 207
________________ RTOILETERIAreणायकलm के बाद ही बालक का नाम 'परनाथ' स्थापित किया । 'मछली' का चिह्न घोषित किया। दीन, अनाथ, याचक तो पहले ही तृप्त हो चुके थे फिर भी इस समय अपूर्व दानादि दिया गया। कुन्थुनाथ भगवान के बाद १ हजार करोड़ वर्ष कम चौथाई पल्य बीत जाने पर अरनाथ हुए । इनकी आयु भी इसी समय में सम्मिलित है । प्रायु प्रमाण--- इनकी आयु ८४ हजार वर्ष की थी । ३० धनुष ऊँचा शरीर और कान्ति सुवर्ण के समान थी। लावण्य की परम हद् थे क्योंकि कामदेव पदवी के धारी थे । भाग्य की उत्तम खानि, सुन्दरता के समुद्र थे । सम्पदानों के घर थे । कुमार कास--- लोगों को चकित और भ्रमित करते हुए बाल शिशु द्वितीया के चन्द्र समान बढ़ने लगे । लक्ष्मी के साथ छोटा कल्पवृक्ष ही हो ऐसे प्रतीत होते थे। देव कुमारों के साथ नाना विनोद-क्रीड़ाएँ करते थे । सभी खेलों में साम्यभाव झलकता था । स्वभाव से व्रती थे। इस प्रकार कुमार काल के २१००० वर्ष पूर्ण हुए । राज्य और चक्रवर्तीत्वपद इक्कीस हजार वर्ष की आय में उनका अनेको सुन्दर कन्याओं के साथ विवाह हुमा । इन्द्र के प्रादेशानुसार पिता ने राज्यभार प्रदान किया । २१००० वर्ष पर्यन्त माण्डलिक राजा रहे । इसके बाद उनकी प्रायुध शाला में चक्ररत्म की उत्पत्ति हुई। ६६ हजार रानियों के साथ अनेक प्रकार के भोगोपभोग का अनुभव करने लगे। १४ रल और नव-निधियाँ थी। ३६३ रसोईये थे। भरतेश्वर चक्रवर्ती के समान ही सम्पूर्ण वैभवादि थे। इस प्रकार २१००० वर्ष पर्यन्त चक्रवर्ती पदत्व का भोग किया। बैराग्य-- अधिक स्वादिष्ट, रुचिकर पदार्थों को यदि आवश्यकता से अधिक खाता ही जाय तो नियम से वान्ति होगी, यदि कदाच न हो तो उपाय

Loading...

Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271