Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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इन्द्र हुए। इनकी २० सागर की आयु थी, शुक्ल लेश्या, ३॥ हाथ शरीरोत्सेघ, १० माह में उच्छवास, २० हजार वर्ष बाद मानसिक अमृत पाहार था । मन से होने वाला मात्र किंचित संभोग था । पाठ ऋद्धियों से सम्पन्न थे । ५वें नरक तक अवधिज्ञान था। इस तरह १० प्रकार कल्पवृक्षों के दिव्य भोगों का भी प्राचुर्य था । स्वर्गावतरण
वृक्ष पल्लवित होता है तो उसकी छाया भी सघन और विस्तृत हो जाती है । जोव के पुण्य के साथ उसका यश, महिमा और वैभव भी बढ़ने लगता है, अस्तु, इन्द्र की आयु ६ माह शेष रह गई । देवगा हर्ष से पृथ्वी पर रत्न वर्षाने लगे।
भरत क्षेत्र को राजगृही नगरी (पञ्च पहाड़ी) में मगध देश के राजा सुमित्रा का भाग्य सितारा चमका । यह हरिबंश का शिरोमणि, काश्यप गोत्र का शिखामणि था । इसकी पट्र-महादेवी का नाम सोमा था । सोमा को गर्भ-गोधना के लिए स्थगिरि निवासी देवियाँ प्राकर दिव्य सुगधित पदार्थों से गुद्धि करने लगी । श्री, ह्री, पति आदि देवियाँ नाना विधि मुखोपभोग सामग्रियों से आनन्दित करने लगी। प्रतिदिन राजाङ्गरण में रत्नवृष्टि होती ही थी। कोई याचक ही नहीं रहा । ढेर पड़े थे हीरा, मोती, मारिगकों के जैसे प्राज म्युनिसिपलिटी की अध्यवस्था से सड़कों पर कचरे के ढेर लगे रहते हैं।
एक दिन श्रावण कृष्णा द्वितीया के दिन श्रवण नक्षत्र में उस देवांगना सेवित महारानी में रात्रि के अन्तिम प्रहर में १६ स्वप्नों के बाद मुख में विशालकाय हाथी को प्रविष्ट होते देखा । बन्दीजनों की मंगल-ध्वनि से निद्रा भंग हुयी। निरालस्य, सिद्ध-परमेष्ठी का ध्यान करती उठी । शीघ्र सज-धज कर पतिदेव के पास जाकर स्वप्नों का फल पूछा। "तीर्थङ्कर कुमार की मां बनोगी" सुनकर हर्ष से फूली नहीं समायीं ।
धीरे-धीरे स्फटिक मरिण के करण्टु में शोभित मरिगवत् गर्भ की वृद्धि होने लगी, परन्तु न तो माँ की उदर वृद्धि हुयी न अन्य ही पालस्यादि चिह्न ही प्रकट हुए । अपितु उनका रूप लावण्य, कान्ति, सौभाग्य, बुद्धि प्रादि गुण समूह बढ़ने लगे। २२. ]