Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 235
________________ 000000mAvivation0 A MMAR अभिषेक किया। इन्द्राणी ने देवियों के साथ उनका श्रृंगार किया । पुनः द्वारिका में ला माता-पिता को अर्पण कर 'मानन्द नाटक' किया ! देव देवियों को बाल रूप बना बाल तीर्थंकर के साथ खेलने-कुदने, सेवादि करने की प्राज्ञा दी । बालक का नाम मेमिनाथ प्रख्यात किया । इन्द्र ने स्वयं जन्मकल्याणक पूजा की और स्वर्ग चला गया । द्वारावती में घर-घर अनेक उत्सव किये गये । उनका चिन्ह शंख था । वे अपनी मधुर चेष्टाओं से मयंकवत् बढ़ने लगे। भगवान नमिनाथ के मोक्ष जाने के बाद ५ लाख वर्ष बीतने पर इनका अवतार हुआ । इनकी प्रायु १००० वर्ष भी इसी में है। शरीर १० धनुष ऊँचा (४० हाथ) था ! वर्ण मयूर ग्रीवा सहश नील था। जन्म से ही नेमिनाथ निर्मल मति, श्रुत और अवधिज्ञानी थे। इनके पिता समुद्र विजय ने राज्यभार अपने भाई के पुत्र कृष्ण को दे दिया था। कृष्ण जरासंध पर चढ़ाई करने जा रहे थे उस समय नेमि कुमार से पूछा "भगवन् ! इस युद्ध में मेरी विजय होगी या नहीं?" प्रभ अवधि से विजय ज्ञात कर मात्र मुस्कुराये । इससे कृष्ण अपनी विजय जान हर्षित हो गये । विजय प्राप्त की। . कुमार काल. नेमिनाथ ने अपने बल से श्री कृष्ण को परास्त कर दिया था, शंख फंका, नागशैया पर सोये, धनुष चढाया इत्यादि कौतूकों से के सबको चकित कर चुके थे। उनकी प्रशंसा के नारे चारों ओर गंजते । परन्तु नेमि कुमार को तनिक भी गर्व नहीं था। तो भी कुरामा महाराज उनके प्रति शंकाकुल रहते थे। परम्परा से राज्याधिकारी नेमि स्वामी थे और बलवान भी इस लिए कृष्ण सतत भयभीत रहने लगे। नेमि प्रभ भी ३०० वर्ष पार करने वाले थे। विवाह प्रस्ताव श्री कृष्ण ने समुद्र विजय, बलदेव आदि से नेमि कुमार का विवाह करने की सलाह की। सबकी अनुमति पाकर जूनागढ़ के राजा उग्रसेन से सर्वाङ्ग सुन्दर, गुगाज कन्या राजमती (राजूल) के साथ विवाह करना निश्चित किया । शंका शंकु समान होती है, उससे मानव को जैन नहीं मिलता । अस्तु कृष्ण ने षडयन्त्र रचा। बारात जाने के मार्ग में पशुओं को घिरवा दिया।

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