Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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सुखद बनाये हुए थीं । उसने अपने मित्रों को उसे दिखाया और प्रशंसा . करता आगे बढ़ा । कुछ समय के बाद वह लौटा तो देखा कि वह विशाल वृक्ष बिजली पड़ जाने से प्रामूल भस्म हो गया । राजा हतभ्रत हो गया । उसे संसार की निस्सारता विदित हई । घर लौटा और अपने पूत्र को राज्य दे नागश्री मुनिराज के सन्निकट दैगम्बरी दीक्षा धारण कर ग्यारह अंग के पाठी हो गये। सोलह कारह भावना भाकर (चिन्तवन कर) उत्तम तीर्थङ्कर पुण्य प्रकृति का बंध किया । प्राय के अन्त में समाधि सिद्धकर 'अपराजित' नाम के अनुत्तर विमान में जाकर उत्पन्न हुए । ३३ सागर की आयु श्री अहमिन्द्र के समस्त प्रवीचार रहित भोगों को सानन्द भोगता था । यही अहमिन्द्र यहाँ से च्युत हो मल्लिनाथ तीर्थकर होगा। स्वर्गावतरण-गर्भ कल्याणक महोत्सव
अहमिन्द्र की प्रायु ६ माह शेष रह गयी । भरतक्षेत्र के बंगाल देश में मिथिला नगरी का अभ्युदय बढ़ने लगा । इश्वाकु वंशीय, कश्यप गोत्रीय महाराजा कुम्भ अपने वैभव के साथ गुरणों की वृद्धि कर रहा था । उसकी महादेवी का नाम प्रजावती था। अनेकों देवियाँ उसकी सेवा करने लगीं । स्वर्गीय दिव्य पाहार, पान, वस्त्रालंकार प्रादि से सेवित थीं । प्रतिदिन प्राकाश से बारह करोड़ रत्नों की वर्षा होती थी। इन चमत्कारों से राजा-रानी परम संतुष्ट थे । इस प्रकार भूमितल यथार्थ वसुधा नाम को धारण करता शोभित हुआ । ६ माह पूर्ण हो गये।
चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के दिन अश्विनी नक्षत्र में रात्रि के पिछले प्रहर में महादेवी प्रजानती ने अति अदभत १६ स्वप्न देखे । प्रातः सिद्ध परमेष्ठी के स्मरण के साथ निद्रा तज, उठी। श्री हो आदि देवियाँ नाना विधि स्तुति कर गारादि सामग्री लिए तैयार थीं । शीघ सज्जित हो सभा में पधारी । महाराज से स्वप्न निवेदित कर उनके फल जानने की जिज्ञासा व्यक्त की । "तीर्थ र पुत्र होगा" कहकर राजा ने अत्यानन्द अनुभव किया । महादेवी परमानन्द में विभोर हो गई।
अम्मकस्पारणक
सुख की घड़ियाँ शीघ चली जाती हैं। क्रमशः नव मास पूर्ण हो गये । माता को शरीर जन्य कोई विकार नहीं हुप्रा । प्रमाद के स्थान
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