Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रावक और अहंदासी प्रादि ४ लाख श्राविकाएँ थीं। असंख्यात देव, .. देवियाँ और संख्याते तियञ्च भव्य जीव थे। सबको धर्मामृत पान कराते । इनका यक्ष गार और यक्षी महामानसी थी। योग निरोध
प्राय का १ माह शेष रहने पर आप उपदेश बन्द कर श्री सम्मेद शिखर पर्वत की कुन्दप्रमा कूट पर प्रा विराजे । तीसरे शुक्ल ध्यान से योग निरोध किया । मोक्ष प्राप्ति और मोक्ष कल्याणक-...
अ इ उ ऋ ल इन लघु अक्षरों के उच्चारण में जितना काल लगता है, उतने समय में चौथे शुक्ल ध्यान से तीनों प्रकार कमों का अशेष नाश कर सिद्धावस्था प्राप्त की। इस प्रकार ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान ने मुक्ति प्राप्त की। उसी समय इन्द्र और इन्द्राणी, देव देवियाँ पाये और श्री प्रभु की मोक्ष कल्याणक महोत्सव पूजा विधान कर अपने को धन्य माना । अग्नि कुमार देवों ने मुकुट रत्नों की किरणों से अग्नि प्रज्वलित कर संस्कार किया। चक्रायुध ग्रादि १००० नौ हजार मुनिराजों ने भी सह मुक्ति प्राप्त की। सायंकाल भरणी नक्षत्र में मुक्त हुए।
प्रथम श्रीषेण राजा, २ उत्तम भोग भूमि में आर्य, ३ देव, ४ विद्याधर, ५ देव, ६ हलधर ७ अहमिन्द्र, ८ राजा मेघरथ, ६ सर्वार्थसिद्धि . में अहमिन्द्र १० शान्तिनाथ तीर्थङ्कर हुए ।
आदिनाथ स्वामी के बाद धर्मनाथ स्वामी तक मोक्ष मार्ग बीचबीच में विछिन्न हो जाने से फिर से प्रकट किया परन्तु श्री शान्तिनाथ भगवान ने जो मुक्ति मार्ग प्रकट किया वह आज तक अविच्छिन्न रूप से चला पा रहा है । इस अपेक्षा प्राध गुरु श्री शान्तिनाथ स्वामी हैं।
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