Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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७-१००८ श्री सुपार्श्वनाथ जी पूर्णभव..
मानव सामाजिक प्राणी है। किसी के सुख वैभव और प्रतिष्ठा का मूल्यांकन प्रायः सामाजिक दृष्टिकोण से किया जाता है। साथ ही मनुष्य बुद्धि जीवी है । पुरुषार्थी है । सत् पुरुषार्थ द्वारा वह स्वयं शुभ या अशुभ कर्म करता है। तदनुसार शुभाशुभ बंध करता है और उसी प्रकार अच्छा बुरा फल भोगता है 1 जैन शासन में जीव मात्र, सुख और दुख: पाने में पूर्ण स्वतन्त्र है । जो अपने चैतन्य को पाने का प्रयत्न करता है सुखी हो जाता है और निज स्वभाव को पाकर अमर हो जाता है। उभय लोक में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र ही सुख देने वाले हैं। इस तत्व का झाला ही श्रेयस की सिद्धि कर सकता है ।
घातकीखण्ड द्वीप में पूर्व विदेह क्षेत्र है। यह सोता नदी के उत्तर तट पर स्थित है । यहाँ प्राय: पुण्य पुरुष ही उत्पन्न होते हैं। अनेक देशों