Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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हैं, सर्प-नकुल सुहा-बिल्ली आदि जाति विरोधी जीव भी परस्पर परम प्रीति से क्रीड़ा कर रहे हैं ।" इस प्रकार विज्ञप्ति कर वन पालक ने सब ऋतुओं के फल-फूल भेंट कर निवेदन किया । प्रसन्न चित्त राजा ने सर्व वस्त्रालंकार वनमाली को देकर स्वयं प्रजा एवं परिजनों के साथ, शुद्ध प्रष्ट द्रव्यादि ले जिन वन्दन को श्राये । भक्ति और श्रद्धा से पूजा की यथा स्थान बैठकर धर्मोपदेश श्रवण किया । भेद-विज्ञान जाग्रत हुआ । संसार से विरक्ति हो गई । स्तुति कर दीक्षा की याचना की। अपने सुपुत्र पुत्र को राज्यभार अर्पण किया और स्वयं वाह्याभ्यन्तर सर्व परिग्रह का त्याग किया। ग्यारह अङ्गों का अध्ययन किया | सोलह कारण भावनाओं का चिन्तन किया और तीर्थङ्कर गोत्र बन्ध किया । सम्यक् समावि -मरण कर प्रच्युत स्वर्ग में इन्द्र हुआ । २२ सागर श्रायु, तीन हाथ का शरीर शुक्ल लेश्या, अवधिज्ञान ( भवावधि) से युक्त था । गर्भ - कल्याणक
उषा विहंसने लगी । प्राची ने लाल चादर मोडली | पक्षी गण कलरव करने लगे । प्रकृति उल्लास में झूम रही थी । इधर महारानी सुनन्दा देवी ने निद्रा का परित्याग किया। महाराजा विष्णु भी आज विशेष प्रसन्नचित थे । यहीं नहीं सिहपुर नगर ही मानों विशेष उल्लास में डूबा था | जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र का मानों मुकुट ही हो । इक्ष्वाकुवंश का यश ही मानों चारों ओर बिखर गया हो । राजप्रासाद में दास दासियाँ हर्षोत्फुल्ल हो गयीं। ठीक ही है । स्वामी के सुख-दुःख में सुखदुःख मानना श्रेष्ठ सेवकों का कर्तव्य हो है ।
"अरी, क्या कर रही हो ? शोध मेरे स्नान की व्यवस्था करो ? वस्त्रालंकार लानी" सुनते ही दासियाँ दौड़ पड़ी। कुछ ही क्षणों में महादेवी सुनन्दा सोलह श्रृंगार से विभूषित हो गई । सिद्ध परमेष्ठी का ध्यान करते हुए रात्रि के पिछले प्रहर में देखे १६ स्वप्नों का रहस्य जानने की इच्छा से व्यय थी । शीघ्र तैयार हो महाराज से अपने १६ स्वप्न कहे । "हे नाथ, प्राज छठ के दिन अन्तिम प्रहर रात्रि में मैंने विश्मयकारी अनुपम स्वप्नों के बाद अपने मुख में प्रविष्ट होते वृषभ को देखा है। इसका फल जानने की इच्छा रखती हूँ।” राजा ने भी अान्तरिक आनन्द की वृद्धि करने वाला "आपके तीन लोकाधिपति होने वाला पुत्र गर्भ में आया है" यह फल
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राजसभा में पधारी । जेष्ठ कृष्णा षष्ठी
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