Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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बतलाया । यह चर्चा पूरी भी नहीं हुयी थी कि आकाश में देवेन्द्र सपरिवार आ गये। गर्भ कल्याणक महोत्सव मनाया । ६ माह से त्रिकाल रत्नों की वर्षा हो रही थी उसका रहस्य आज सब की समझ में आया । इन ६ महीनों में राजकोष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण राज्य की प्रजा का खजाना भर गया था, रत्न राशियों के ढेर लग गये । इन्द्र ने रुचकमिरी निवासियों को प्रथम ही गर्भ शोधना की आज्ञा दी थी । अतः गर्भस्थ भगवान बालक प्रानन्द से पा विराजे थे । सब अति उत्साह से माता-पिता (राजा-रानी) की पूजा कर, नाना प्रकार यशोगान कर देवेन्द्र सपरिवार अपने स्थान को प्रस्थान कर गये । राजा-प्रजा भी सुख सागर में निमग्न हुए।
अन्मोत्सव---
दिन चले जा रहे थे। काल का काम ही है । एक के बाद एक मास पूरे हुए । माँ को न प्रमाद था न कोई बाधा ! अपितु उनकी शरीर कान्ति और मनोबल बढ़ता जा रहा था। निर्मल ज्ञान प्रकाशित हो रहा था। शुद्ध सम्यक्त्व की ज्योति साम्यभार के साथ प्रस्फुटित हो रही थी । प्रामोद-प्रमोद से नवमास पूर्ण हुए। वह घड़ी आई जिसके लिए आबाल वृद्ध पलक पांवड़े बिछाये प्रतीक्षा कर रहे थे। फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन श्रवण नक्षत्र में महादेवी सुनन्दा को तीर्थकर की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हवा । जिस बालक का जन्मोत्सव मनाने इन्द्र भी अपने भोगों को छोड़ कर दौड़ पड़ा उसके प्रताप और यश का नया कहना? उस उत्सव का महत्त्व भी अवर्णनीय है। इन्द्र ही जाने उसने क्या-क्या किया।
अम्मामिवेक..... - माँ सुख निद्रा में निमग्न है और बालक शचि द्वारा ऐरावत हाथी पर आसीन । इन्द्र ले गया पापडक शिला पर । देवगण भर लाए क्षीरसागर से जला मध्यपीठ पर पूर्वमूत विराजे बालक, होने लगा अभिषेक । बह चला जल, प्रवाह हो जैसे नदो का । पवित्र गंधोदक धारा में दूब गये देव-देवियां, इन्द्र शची। सभी ने तो अभिषेक किया ! पुण्य का संचय किया ! पापों का संक्षय किया । जन्म को सफल किया । इन्द्राणी ने प्रभ का गार किया। देवियों के साथ मिरांजना उतारी । उमंग
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