Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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MIRKwami-UNITM
कृष्णा दशमी के दिन रात्रि के पिछले प्रहर में सुख से सोते हुए १६. स्वप्न देखे । मुखकमल में प्रविष्ट होता उत्तम हाथी देखा । निद्रा भंग हुई। सिद्ध परमेष्ठी का ध्यान करते हुए शैया का त्याग किया । स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त हो सभा में पधारी। असिन पर बैठ स्वप्नों का फल पतिदेव से पूछा । महाराज ने भी संतुष्ठ हो "तीर्थर" पुत्र होगा कह-उसके असोम प्रमोद को बढ़ाया। उसी समय चरिंगकाय देत्रों ने आकर गर्भ-कल्याणक पूजा की । अर्थात् माता का सम्मान किया । भक्ति की और सातिशय पुण्यार्जन किया । अनेको स्वर्गीय सुखसुविधाओं के साथ गर्भ बढ़ने लगा। अर्थात् बालक की वृद्धि होने लगी किन्तु मां की उदर वृद्धि नहीं हुयी। किसी प्रकार भी प्रमाद ग्रादि या अन्य कष्ट कुछ भी नहीं हुआ । शरीर सौन्दर्य के साथ बुद्धि, कला, गुणा विज्ञान वृद्धिंगत हुए। जन्म कल्याणक---- ___ मां को संतान मात्र को प्राप्ति प्रानन्दकर होती है फिर पुत्र हो तो और अधिक हर्ष होता है और जिसके तीन लोक का नाथ बनने वाला पूत्र हो, जिसने गर्भ में आने के पहले ही इन्द्र को नत कर दिया हो उस पुत्र की जननी के सुख-ग्रानन्द और संतोष का क्या ठिकाना ?
__ माघ शुक्ला चतुर्थी के दिन उत्तरा भाद्र नक्षत्र में जगन्म जयश्यामा देवी ने विश्वत्रय के साथ अष्ट कर्म विजयी श्रेष्ठतम पुत्र को प्रसव किया । तीनों लोक अभिल हो गये । भूकम्प के समान स्वर्ग लोक कम्पित हमा | इन्द्र तीर्थङ्कर जन्म जात कर सप्त प्रकार सेना सहित ऐरावत गज पर शचि सहित सवार होकर प्राया। नगर की तीन परिक्रमा कर इन्द्राणी को प्रसूतिगृह में भेजा । सद्योजात प्रभु की शरीर कान्ति से आलोकित कक्ष में इन्द्राणी पाश्चर्य से कि कर्तव्य विमूर सी हो गई । माया निद्रा में सुख से सुला, बालक को लाकर इन्द्र को दिया उसने भी १ हजार नेत्रों से प्रभु बालक को रूप राशि का पान किया। ससंभ्रम मेरु पर्वत पर जा पहुंचे।
मति, श्रुत, अवधि ज्ञान युत भगवान बालक को पाण्डुक शिला पर स्थित तीन सिंहासनों में मध्य स्फटिक सिंहासन पर बालक प्रभु को विराजमान किया । देवगण हाथों हाथ क्षीर सागर का जल लाये । १०० कलशों से जन्माभिषेक कर स ग में गंधोदक लगाया । इन्द्राणी