Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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योग निरोष एवं मुक्तिगमन -
एक महिने का योग निरोध कर सम्मेदाचल की मोहनकुट पर प्रतिमायोग धारण कर प्रा विराजे । इस पवित्र स्थान से १००० मुनियों के साथ फाल्गुन कृष्णा चौथ के दिन चित्रा नक्षत्र में सायंकाल दयुपरत क्रिया निवृत्ति माम के चौथे शुक्लध्यान से कर्मों को नाश कर मोक्ष पद प्राप्त कर लिया। उसी समय इन्द्रादि देव देवियों ने प्राकर निर्धारण कल्याणक पूजा की इन्द्र स्तुति करने लगा, सेवा किसकी करनी चाहिए ? कमल को जीत लेने से लक्ष्मी ने भी जिन्हें अपना स्थान बनाया है ऐसे भगवान पद्मप्रभु स्वामी की पूजा करना चाहिए । सुनना क्या चाहिए ? १८ दोषों का नाश करने वाले उन्हीं पयप्रभु भगवान की सत्यवाणी को । ध्यान किसका करना चाहिए ? सबको विश्वास व श्रद्धान कराने वाले पद्मप्रभ स्वामी का । इस प्रकार नाना प्रश्नोत्तरों द्वारा इन्द्र ने प्रभ का गुनगान किया। तदनन्तर समस्त नर-नारियों, विद्याधर, प्रादि में भी मिलकर परम भक्ति, श्रद्धा और विनय से प्रानन्द विभोर हो निर्वागहोत्सव मनाया, लाडू आदि चढ़ाकर अर्चना की। अाज भी जो भव्य इस मोहन कुट की वन्दना करता है उसे १ कोटि उपवास का फल प्राप्त होता है । नरक और तियंञ्च गति का नाश होता है एवं ४६ भव से अधिक संसार परिभ्रमरण नहीं होता ! कलिकाल में सम्मेदाचाल भन्यत्र भाव का निर्णायक है । भव्य प्राणियों को अवश्य दर्शन करना चाहिए।
|| जयतु श्री पद्मप्रभु शासनम् ।।
चिह्न
कमल
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