Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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गूंज उठता है उसी प्रकार रत्नों को कान्ति से प्रांगरण रंग-बिरंगा हो । उठा । जय-जय ध्वनि से कर्ण कहर सप्त हो गये । दास-दासियों का कोलाहल मच गया । कोई उठाचे, कोई दिखावे कोई रखाये यह अचहा, यह सुन्दर प्रादि वार्तालापों से कोलाहल मच गया । इक्ष्वाकुवंश का यश मूर्तिमान हो पाया क्या ? महाराज दृढ रथ चकित नहीं थे। विवेक से स्थितप्रज्ञ रहे और उन रत्नों से राज्य को दरिद्र हीन बना लिया ! छ माह की अवधि पूर्ण हुयी । महारानी सुनन्दा प्रानन्द की घाम थी। शील, संयम प्रादि गुणों को खान और अद्भुत शरीर शोभा से युक्त थीं।
चैत्र मास प्रारम्भ हुआ । वृक्ष लताओं ने पुरातन पत्तों को छोड़कर नयी कोपलों को धारण किया । चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन ही माता सुनन्दा ने भी पिछली रात्रि में १६ शुभ स्वप्नों के साथ पूर्वाषाढ नक्षत्र में गर्भाधान किया। स्वभाव से रज-रक्त रहित उदर होने पर भी रुचकगिरि के भवनों से पायी देवियों ने नाना प्रकार सुगंधित दिव्यद्रव्यों से सुवासित कर दिया था। जड़ रुप पुण्य कर्म भी जीव के सान्निध्य में प्रा, क्या क्या नहीं करता ? बहुत कुछ सुख सामग्री प्रदान करता है। प्रात: महारानी ने राजसभा में पतिदेव से स्वप्नों का फल ज्ञात करना चाहा। महाराजा ने 'प्रारण स्वर्ग का इन्द्र गर्भ में अवतरित हुआ है जो तीर्थङ्कर बन मुक्ति प्राप्त करेगा।" कह कर अति हर्षित हा । नानाविध अनेकों देवियों से सेवित माता बिना किसी खेद के सुख सागर में निमग्न हो, समय यापन करने लगी। देवेन्द्र ने सपरिवार गर्भ कल्याणक पूजा कर देवियों को सेवार्थ नियुक्त किया ।
जन्म सत्यागक
क्रमश: नव मास पुर्ण हुए । माघ कृष्णा द्वादशी का दिन पाया, पूर्वाषाढा नक्षत्र था । प्राकाश जय-जय नाद से गूंज उठा सागर के जल की भांति इन्द्र सेना दल उमड़ पडा । ऐरावत हाथी प्रकाश में प्रा खड़ा हया । कारण अभी-अभी महादेवी सुनन्दा ने शिरीष कुसुम से भी अधिक कोमल, सर्वाङ्ग सुन्दर पुत्र रत्न को जन्म दिया । भद्रपूर अानन्दोत्सव से सज उठा । शचि द्वारा लाये बालक को हजार नेत्रों से देखकर भी अतृप्त इन्द्र मे शिखर पर पर पहुंचा। पाण्डक शिला पर बने तीन सिंहासनों में से मध्यवाले सुदीर्घ सिंहासन पर पूर्वाभिमुख सद्योजात प्रभु बालक को विराजमान किया । १०० कलशों से सानन्द
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