Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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१०-१००८ श्री शीतलनाथ जी पूर्व मव परिचय -
"राजन् वन की शोभा निराली ही हो गई है। बसन्त ऋतुराजा मापके सुख साम्राज्य से ईष्या कर अपना सारा वैभव लेकर छा गया है। उद्यान में प्रा.स वृक्ष मंजरियों से लद गये हैं, कालियों की मधुर. कलरव. ध्वनि गूंज रही हैं । भौंरों का संगीत करणौ का प्राकृष्ट किये है । कुन्द. पुष्पों से दिशाएँ धवलित हो गई हैं । मोल सिरि के सुगंधित पुष्प मधुपों से प्राक्त्त हैं। सरोवरों में कमल, पूरहरीक एवं कुमुद विहंस रहे हैं उनकी पीली पराग (केशर) से जल पीजिरित (पीला) हो गया है । मन्द-सुगन्द पवन से झूमते हुए लता-गुल्म पापको बुला रहे हैं । उद्यान की प्रत्येक वस्तु सापकी प्रतीक्षा कर रही है।" इस प्रकार विनम्र निवेदन करते हुए वन पालक ने सुसीमा नगरी के अधिपति महाराज पभगुल्म के समक्ष कुछ मधुर-सुगंधित फल-पुष्प भेंट करते हुशा नमस्कार किया।
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