Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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जो प्रथम भव में रत्न संचयपुर नगर में महाबल नाम के राजा थे, विजयनामा अनुतर विमान में अहमिन्द्र हुए, पुनः श्री वृषभदेव के इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या नगर के स्वामी राजा अभिनन्दन हुए वे तीर्थङ्कर प्रभु हमें भी आत्म स्वातन्त्र्य प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करें। ॐशान्ति-ॐ ।
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चिह्न
आनन्दकूट महासुखदाय, अभिनन्दन प्रभु शिवपुर जाय । कोडाकोडि बहत्तर जान, सत्तर कोडि लखि छत्तिस मान । सहस बियालीस शतक जु सात, कहे जिनागम में इह भात । ये ऋषि कर्म काटि शिवगये, तिनके पदजुग पूजत भये ।।
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