Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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प्रदान कर समस्त राज्य को सुव्यवस्थित कर प्रजा को संतुष्ट किया । इस प्रकार वृषभ स्वामी समस्त राज्यलक्ष्मी से विरक्त हो वन जाने को उद्यत हुए । सर्वप्रथम समस्त कुटुम्ब परिवार परिजन पुरजन से प्राज्ञा मांगी । उसी समय इन्द्र "सुदर्शना" नामक पालकी ले आया । नाना वेषभूषा से सुसज्जित प्रभु शिविका में विराजमान हुए । इन्द्र पल्यंक उठाने को तैयार ही था कि मनुष्यों ने विरोध किया । वे बोले, भगवान हमारे हैं, हमारी पर्याय में है इसलिए हम पालकी प्रथम उठायेंगे । विषम समस्या थी इन्द्र के सामने । बुद्धि सम्पन्न जनों का निर्णय था “जो प्रभु के समान संयम धारण कर सके वही प्रथम पालकी उठाये" बेचारा इन्द्र क्या करे ? समस्त इन्द्र का ऐश्वर्य देकर भी मानव पर्याय नहीं पा सका एक क्षण को परास्त होना पड़ा ।
सर्व प्रथम भूमिगोचरी राजाओं ने शिविका उठायी, सात पेंड लेकर गये, पुनः विद्यावर राजा ७ पेंड ले गये, तदन्तर देव, इन्द्र प्रादि आकाश मार्ग से ले चलें । कुछ ही क्षणों में सिद्धार्थ वन में जा पहुँचे। उनके पीछे पूरा रनवास उमड़ा चला आ रहा था । नाभिराज, मरुदेवी माता यशस्वती, सुनन्दा, भरतेश्वर बाहुबलि, मन्त्री, पुरोहित सभी खले या रहे थे प्रभु का निष्क्रमण महोत्सव देखने के लिए । हयं त्रिषाद की लहरों में उतरते जन-समूह ने भी उस वन में प्रवेश किया 1
इन्द्र द्वारा स्थापित चन्द्रकान्त मरिण की शिला पर प्रभु विराजमान हुए | "नमः सिद्धेभ्य" कह कर वस्त्रालंकारों का त्याग किया । अन्तरङ्ग विषय कायों का सर्वथा त्याग कर २४ प्रकार के वाह्याभ्यंतर परिग्रह रहित हुए। स्वयं पञ्चमुष्ठी लोंच किया । उस समय इन्द्राणी द्वारा रत्न चूर्ण से मण्डित शिला पर प्रभु शोभायमान नहीं हुए श्रपितु प्रभु की कान्ति से वह शुभ्र शिला कंचनवर्ण हो रम्य हो गई । केशों को इन्द्र ने रत्न पिटारे में संजोया । भगवान ने पांच महाव्रत ५ समितियाँ, पञ्चेन्द्रिय निरोध, पडावश्यक एवं ७ शेष गुरण इस प्रकार २८ मुलगुर धारण कर जैनेश्वरी दीक्षा धारण की ओर अखण्ड मौनत लेप में लीन हो गये । यह चैत्र कृष्णा नवमी का दिन था । समय सायंकाल, उत्तराषाढ़ नक्षत्र, शुभ मुहूर्त और शुभ लग्न की बेला थी ।
इन्द्र ने केशों को रत्न पिटारी में रख सफेद वस्त्र से बांधा और क्षीर सागर में जाकर क्षेपण किया । ठीक ही है महापुरुषों की संगति से
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