Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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राजा भी फूला न समाया। जहाँ देव-देवियों परिचारक हो वहां के सूख-साधन, ऐश्चर्य का क्या कहना? निमिष मात्र के समान नव मास पूर्ण हो गये। जन्म कल्याणक
बिना किसी बाधा के मां ने अपने विशेष पुष्योदय से माघ शुक्ला द्वादशी के दिन प्रादित्य योग और पुनर्वसु नक्षत्र में उत्तम पुत्र उत्पन्न किया । मौका पूण्य तो था ही पुत्र का पूण्य उससे भी कई गुणा था जिसने इन्द्रासन कपित कर दिया और स्वर्ग के १२।। करोड़ बाजों को एक साथ बजा दिया। यही नहीं एक क्षण के लिए नारकियों को भी सूख उलान किया 1 अपने देव, देवियों के साथ उसी समय इन्द्र प्रकर बालक को शचि द्वारा प्रसूति गृह से मंगाकर शचि सहित ऐरावत हाथी पर सवार हो सुमेरू पर्वत पर जा पहँचा । पाण्डक शिला पर पूर्वाभिमुख विराजमान कर क्षीर सागर के जल से १००८ कलशों से अभिषेक किया । पुन: देवियों ने इन्द्रागी सहित काषाय जल, सुगंधित जल से अभिषेक कर प्रभु को वस्त्रालंकारों से सज्जित किया । सद्योजात बालक का रूप निरखने को इन्द्र मे १ हजार नेत्र किये उनके सौन्दर्य का प्रया पार? चारों और प्रानन्द छा गया। इन्द्र ने बालक का नाम 'अभिनन्दन घोषित किया और उसी समय 'वानर' का चिह्न भी निपिचत कर दिया । जन्माभिषेक कर अयोध्या प्राये, आकाशगरण में अनेक प्रकार के हान, भाव रस युक्त हजार नेत्र और अनेक भुजाएँ बनाकर इन्द्र ने ताण्डव नत्य कर पुण्यार्जन किया । मायामयी बालक हटाकर बालप्रभ को माता-पिता को प्रदान कर स्वर्ग लोट गये ।
अन्तराल काल--
भगवान संभवनाथ के बाद दश लाख करोड़ सागर व्यतीत होने पर श्री अभिनन्दन स्वामी हुए । इनकी आयु भी इसी में सम्मलित है।
प्रायु प्रमाण और शरीर उत्सेष.-.
इनकी प्रायु पचास लाख पूर्व की थी। १२॥ साढ़े बारह लाख पूर्व कुमार काल में बीते । शरीर की ऊँचाई ३५० धनुष थी, उदित होते चन्द्र के समान शरीर की कान्ति थी के पुण्य के पुञ्ज थे । सूर्य