Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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भरत महाराज प्रभु द्वारा प्रश्नोत्तर सुन विशेष रूप से धर्म ध्यान में दत्तचित्त हुए । राजा प्रजा दोनों ही षट्कर्मरत हुये ।
स्वयम्बर प्रथा का प्रारम्भ ----
हस्तिनांगपुर का राजा सोमप्रभ था। इसकी रानी लक्ष्मीमती से "जय" नाम का पुत्र हुभा । सोमप्रभ ने कारण पाकर अपने भाई श्रेयान कुमार के साथ श्री वृषभ स्वामी के समक्ष दीक्षा ले परम मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त की । जयकुमार राजा हुआ ।
बनारस के राजा अकम्पन की रानी सुप्रभा से उत्पन्न सुलोचना नाम की अत्यन्त मनोहर कन्या थी। यौवन में प्रविष्ठ देख अकम्पन्न ने विचार-विमर्श कर सर्व प्रथम 'स्वयम्वर' प्रथा को चलाया । सुलोचना ने फाल्गुन मास की अष्टालिका में श्री जिनेन्द्र देव की पूजा की तथा अत्यन्त आनन्द विभोर हो शेषा लेकर अपने पिता के समक्ष गई । इसे युवती देख, राजा कुछ चिन्तित हुए । मन्त्रणा कर "स्वसम्बर मण्डप करने का निर्णय किया।
देश देशान्तर के राजा पाये । जयकुमार भी उपस्थित हुए। सुलोचना कन्या ने अपने अनुरूप उत्तम गुणधारी जयकुमार के गले में वर माला डालो । यहीं से "स्वयम्बर" प्रथा प्रारम्भ हुयी । समवसरण में यतियों एवं श्रावकों का प्रमाण...
भगवान श्री बृषभ देव के समवसरण में ८४ गणधर मुनिराज, २०००० (बीस हजार) सामान्य केवली, ४७५० पूर्वधारी, ४१५० उपाध्याय-पाठक या शिक्षक, १२७०५ विपुलमति मन: पर्यायज्ञानी, २०६०० विक्रिया ऋविधारी, १००० अवधि ज्ञानी, १२७५० बादी इस प्रकार सम्पूर्ण ६४००० थी। प्रमुख गरिएनी आयिका ब्राह्मी को लेकर ३५०००० प्रायिकाएं थीं, भरत चक्री को लेकर ३ लाख धावक और ५ लाख भाचिकाएँ थीं तथा देव, देवी एवं तिर्यकच असंख्यात थे । भगवान की शासन यक्षी चक्रेश्वरी एवं यक्ष श्री मोमुख था । अपवेशकाल -
भगवान ने १ हमार बर्ष १४ दिन कम १ लाख पूर्व काल तक धर्मोपदेश दिया।