Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१.४४] मात्रावृत्तम्
[२१ इसके बाद हर वर्ण के आदि तथा अंत के कोठे में १, १ अंक देना चाहिये, तथा हर बीच के कोठे में ऊपर के दो कोठों का योग लिखें । इस क्रम से मिले अंको का संपूर्ण योग उस उस अक्षर का छंदःप्रस्तार समझें। इन्हें निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है
एकवर्णमेरुपंक्ति द्विवर्ण त्रिवर्ण चतुर्वर्ण पंचवर्ण षट्वर्ण सप्तवर्ण
१७ | २१ | ३५ ३५ | २१७ १ १२८ अष्टवर्ण
__ १ ८ २८| ५६, ७०/ ५६/ २८ ८१ | २५६ नववर्ण
१९ ३६ ८४ १२६ | १२६ | ८४ | ३६ | ९ | १ ४१२ दशवर्ण ११० ४५/ १२० | २१०/ २५२] २१० १२० ४५ | १० | २ | १०२४ एकादशवर्ण | १ ११ ५५ १६५ | ३३० | ४६२ ४६२ | ३३० | १६५, ५५, ११, १ २०४८
इसी क्रम से आगे के वर्गों के छन्दःप्रस्तार का भी पता लगाया जा सकता है। दाहिनी ओर अन्त में लिखे अंक उक्त पंक्ति के अंकों का योग है । ये तत्तत् वर्ण के छंदःप्रस्तार की संख्या का संकेत करते हैं ।
टिप्पणी-अख्खर<अक्षर (क्ष>क्ख) । कोट्ठ कोष्ठ (कोट्ठ+शून्य विभक्ति कर्म. ए० व०) ।
करु / कर+उ आज्ञा० म०पु०ए०व० (हि० करो) ।
पढमक प्रथमांक (प्राकृत अपभ्रंश में स्वर संधि में जहाँ अ+अ होते हैं, परवर्ती 'अ' के सानुस्वार होने पर दोनों की संधि 'अं' होती है, क्योंकि 'वहाँ' 'आ' न होने पर भी मात्रा-भार अनुस्वार के कारण बना ही रहता है । (पढमंक +शून्य कर्म ए० व०) ।
आइ अंत-ये दोनों अधिकरण कारक के रूप हैं, इनमें अधिकरण कारक की शून्य विभक्ति पाई जाती है (आइ+0 <आदौ) (अंत+० < अंते) ।
अंके 2 अंकेन (अंक+ए, करण कारक ए० व०) ।
भरु- भर+उ (आज्ञा म०पु०ए०व०) (हि० रा० भरो, भर) ।
सूई < सूची (कगचजतदपयवां प्रायो लोप: प्रा०प्र०२.२) सूईमेरु समस्त पद है, कुछ व्याख्याकारों ने इसे क्रिया पद माना है तथा इसकी व्याख्या 'सूच्यते' तथा 'सूचय' से की है। ऐसी स्थिति में इसका विकास संस्कृत / सूच धातु से मानना होगा । हमारी समझ में पहली व्युत्पत्ति विशेष ठीक है।
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