Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text ________________
हेम प्राकृत व्याकरण : XXVII ४-३६३।। अदस ओइ ।। ४-३६४॥ इदम आयः।। ४-३६५।। सर्वस्य साहो वा।। ४-३६६।। किमः काइं-कवणौ वा।। ४-३६७।। युष्मदः सौ तुहं ।। ४-३६८।। जस्-शसोस्तुम्हे तुम्हई।। ४-३६९।। टा-ङय्मा पइं पड़।। ४-३७० ।। भिसा तुम्हेहिं ।। ४-३७१।। ङसि-ङस्भ्यां तउ तुज्झ तुध्र।। ४-३७२।।भ्यसाम्भ्यां तुम्हह।। ४-३७३।। तुम्हासु सुपा।। ४-३७४ ।। सावस्मदो हउं।। ४-३७५ ।। जस्-शसोरम्हे अम्हई ।। ४-३७६।। टा-ङयमा मई ॥ ४-३७७|| अम्हेहिं भिसा।। ४-३७८।। महु मज्झुङसि-ङस्-भ्याम्।। ४-३७९।। अम्हहं भ्यसाम्-भ्याम्।। ४-३८०।। सुपा अम्हासु।। ४-३८१।। त्यादेराद्य-त्रयस्य संबन्धिनो हिं न वा।। ४-३८२।। मध्य-त्रयस्यादयस्य हिः।। ४-३८३।। बहत्वे हः।। ४-३८४|| अन्त्य-त्रयस्यदयस्य ।। ४-३८५|| बहत्वे हं।। ४-३८६।। हि-स्वयोरिदुदेत्।। ४-३८७।। वय॑ति-स्यस्य सः।। ४-३८८।। क्रियेः कीसु।। ४-३८९।। भुवः पर्याप्तौ हुच्चः।। ४-३९०।। ब्रूगो ब्रूवो वा।। ४-३९१।। ब्रजे बुजः।। ४-३९२।। द्दशः प्रस्सः ।। ४-३९३।। ग्रहे गुणहः।। ४-३९४ ।। तक्ष्यादीनां छोल्लादयः।। ४-३९५।। अनादौ स्वरादसंयुक्तानां क-ख-त-थ-प-फां-म- ग-घ-द-ध-ब-भाः।। ४-३९६।। मोनुनासिको वो वा ।। ४-३९७।। वाधा रो लुक् ।। ४-३९८।। अभूतोपि क्वचित्।। ४-३९९।। आपद्विपत्-संपदां द इः।। ४-४०० ।। कथं यथा-तथां थादेरेमेमेहेधा डितः।। ४-४०१।। याद्दक्ताद्दक्कीद्दगीद्दशांदादे र्डे हः।। ४-४०२।। अतां डइसः।। ४-४०३।। यत्र-तत्रयोस्त्रस्य डिदेत्य्वत्तु।। ४-४०४ ।। एत्थु कुत्रा।।। ४-४०५।। यावत्तावतोर्वादेर्मउंमहि।। ४-४०६।। वा यत्तदोतोर्डेवडः ।। ४-४०७।। वेदं-किमोर्यादेः।। ४-४०८।। परस्परस्यादिरः।। ४-४०९।। कादि-स्थैदोतोरूच्चार-लाघवम् ।। ४-४१०।। पदान्ते उ-हुं-हिं-हंकाराणाम् ।। ४-४११।। म्हो भो वा।। ४-४१२।। अन्याद्दशोन्नाइसावराइसौ ।। ४-४१३।। प्रायसः प्राउ-प्राइव-प्राइम्व-पग्गिम्वाः।। ४-४१४।। वान्यथोनुः।। ४-४१५।। कुतसः कउ कहन्तिहु।। ४-४१६।। ततस्तदोस्तोः।। ४-४१७।। एवं-परं-सम-ध्रुवं-मा-मनाक-एम्व पर समाणु ध्रुवुमंमणाउं ।। ४-४१८।। किलाथवा-दिवा-सह-नहे: किराहवइ दिवेसहुँ नाहिं।। ४-४१९।। पश्चादेवमेवैवेदानी-प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्वइ जि एस्वहि पच्चलिउ एत्तहे।।४-४२०।। विषणणोक्त-वर्त्मनो-वुन्न-वुत्त-विच्चं।।४-४२१।। शीघ्रादीनां वहिल्लादयः।। ४-४२२।। हुहुरू-घुरघादय शब्द-चेष्टानुकरणयोः।। ४-४२३|| घइमादयोनर्थकाः।। ४-४२४।। तादर्थ्य केहि-तेहि-रेसि-रेसिं-तणेणाः ।। ४-४२५।। पुनर्विनः स्वार्थे डुः।। ४-४२६।। अवष्यमो डें-डौ।। ४-४२७।। एकरासोडि।। ४-४२८।। अ-डड-डुल्लाः स्वार्थिक-क-लुक् च।। ४-४२९।। योग जाश्चैषाम्।। ४-४३०।। स्त्रियां तदन्ताड्डीः।। ४-४३१।। आन्तान्ताड्डाः।।४-४३२।। अस्येदे।। ४-४३३।। युष्मदादेरीयस्य डारः।। ४-४३४।। अतो.त्तुलः।। ४-४३५।। त्रस्य डेतहे।। ४-४३६ ।। त्व-तलोः प्पणः।। ४-४३७।। तव्यस्य इएव्वउं एव्वउं एवा।। ४-४३८।। क्त्व इ-इवि-अवयः।। ४-४३९।। एप्प्येप्पिणवेव्येयाविणवः ।। ४-४४०।। तुम एवमणाणहमणहिं च ।।४-४४१।। गमेरेप्पिणवेप्पयोरेलुंग वा।। ४-४४२।। तृनोणअः।। ४-४४३।। इवार्थे नं-नउ-नाइ-नावइ-जणि-जणवः।। ४-४४४।। लिंगमतन्त्रम्।। ४-४४५।। शौरसेनीवत्।। ४-४४६।। व्यत्ययश्च।। ४-४४७।। शेषं संस्कृतवत् सिद्धम्।। ४-४४८।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 ... 434