Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 28
________________ भगवान् महावीर के व्यक्तित्व का दर्पण: _ 'वड्हमाण-चरित' -प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन परम्परा और सोत पुरातन-काल से ही श्रमण-महावीर का पावन-चरित कवियों के लिए एक सरस एवं लोकप्रिय-विषय रहा है। तिलोयपण्णत्ती' प्रभृति शौरसेनी-आगम-साहित्य के बीज-सूत्रों के आधार पर दिगम्बर-कवियों एवं 'आचारांग' आदि अर्धमागधी-आगम-ग्रन्थों के आधार पर श्वेताम्बर-कवियों ने समय-समय पर विविध-भाषाओं में महावीर-चरितों का प्रणयन किया है। दिगम्बर महावीर-चरितों में संस्कृत-भाषा में आचार्य गुणभद्रकृत उत्तरपुराणान्तर्गत 'महावीरचरित' (10वीं सदी), महाकवि असगकृत वर्धमानचरित्र' (11वीं सदी), पण्डित आशाधरकृत त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्रम्' के अन्तर्गत महावीर-पुराण, (13वीं सदी), आचार्य दामनन्दीकृत पुराणसारसंग्रह (11वीं सदी) के अन्तर्गत महावीरपुराण, भट्टारक सकलकीर्ति कृत वर्धमानचरित' (16वीं सदी) एवं पद्मनन्दीकृत वर्धमानचरित (अप्रकाशित, सम्भवत: 15वीं सदी) प्रमुख हैं। ___ दाक्षिणात्य'-कवियों में केशव, पद्म, आचण्ण एवं वाणीवल्लभकृत ‘महावीरचरित' उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश-भाषा में आचार्य पुष्पदन्तकृत महापुराणान्तर्गत वड्ढमाणचरिउ (10वीं सदी), विबुधश्रीधरकृत वड्ढमाणचरिउ (वि.सं. 1190), महाकवि रइधूकृत महापुराणान्तर्गत महावीरचरिउ एवं स्वतन्त्ररूप से लिखित सम्मइजिणचरिउ" (15वीं सदी), जयमित्रहलकृत वड्ढमाणकव्व (अप्रकाशित, 14-15वीं सदी के आसपास), तथा कवि नरसेनकृत वड्ढमाणकहा" (16वीं सदी) प्रमुख हैं। ___ जूनी-गुजराती में महाकवि पदमकृत महावीर-रास' (प्रकाशित, 17वीं सदी) तथा बुन्देली-हिन्दी में नवलशाहकृतवर्धमानपुराण' (19वीं सदी) प्रमुख हैं। ___श्वेताम्बर-परम्परा में अर्धमागधी-प्राकृतागमों में उपलब्ध महावीर-चरितों के अतिरिक्त स्वतन्त्ररूप में प्राकृतभाषा में लिखित श्री देवेन्द्रगणिकृत 'महावीरचरियं" (10वीं सदी), 00 26 प्राकृतविद्या+ अक्तूबर-दिसम्बर '2002

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