Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 99
________________ 8888888888 पुस्तक समीक्षा (1) पुस्तक का नाम : गुरुवाणी (पूज्य आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज के प्रवचनों का मराठी अनुवाद) अनुवादक : श्री धन्यकुमार जैनी प्रकाशक : श्रीमती सरयू दफ्तरी, C/o रत्नत्रय हीट एक्सचेंजर्स, विद्यानगरी मार्ग, कालीना, ___ सांताक्रूज (पूर्व) मुंबई-400098 (महाराष्ट्र) संस्करण : अप्रैल 2000 ई., (डिमाई साईज, पेपरबैक, लगभग 200 पृष्ठ) मूल्य : 55/- रुपये ___ परमपूज्य आचार्यश्री के प्रवचनों के पुस्तकाकार संस्करण कई वर्षों से प्रकाशित होते आ रहे हैं, और समाज में ही नहीं अपितु साधु-संघों में भी इनकी भरपूर माँग रहती है। इसका एक प्रमुख कारण गंभीर से गंभीर विषय को सरल एवं सुबोध भाषाशैली में प्रस्तुत करना तथा समाज को एक प्रासंगिक दृष्टि प्रदान करना है। __ यद्यपि पूज्य आचार्यश्री ने ये प्रवचन हिन्दी-भाषा में दिए थे, तथा एक सिद्धहस्त मनीषी ने इन्हें मराठी-भाषा में अनूदित करके महाराष्ट्र के धर्मानुरागियों के लिए पूज्य आचार्यश्री के भावों को पहुँचाने का महनीय-कार्य गरिमापूर्वक सम्पन्न किया है। एतदर्थ विद्वान्-अनुवादक बधाई के पात्र हैं। ____ सुप्रतिष्ठित उद्योगपति एवं विख्यात समाजसेविका श्रीमती सरयू दफ्तरी जी ने इसका प्रकाशन कराकर न केवल मराठी के जैन-साहित्य को समृद्ध किया है, अपितु पूज्य आचार्यश्री के युगांतरकारी मंगल-संदेशों को महाराष्ट्र की धर्मप्राण जनता तक पहुँचाकर बहुत-उपयोगी समाजसेवा की है। __ यह पुस्तक अपने स्तरीय-प्रकाशन के लिये प्रशंसनीय तो है ही, प्रत्येक मराठीभाषी जैनश्रावकं के लिए संग्रहणीय, पठनीय एवं विचारणीय भी है। –सम्पादक ** (2) पुस्तक का नाम : प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ (भाग 1-2) लेखक का नाम : डॉ. कमलचन्द सोगाणी प्रकाशक : अपभ्रंश साहित्य अकादमी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी (राज.) संस्करण : प्रथम भाग 1999 ई., द्वितीय भाग 2002 ई. प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 1097

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