Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 103
________________ सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सरकारी सहायता वाले संस्थानों में गैर-अल्पसंख्यकों को भी दाखिला मिले अल्पसंख्यकों को शिक्षा-संस्थान खोलने की मनमानी की नहीं नई दिल्ली, 31 अक्तूबर । सुप्रीम कोर्ट ने ने कहा है कि धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शिक्षा-संस्थान स्थापित करने का पूरा संवैधानिक अधिकार है। लेकिन उनके संचालन में वे मनमानी नहीं कर सकते। ऐसी संस्था जो सरकारी सहायता भी न लेती हो, तब भी शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए सरकार उनके लिए नियम बना सकती है। सरकारी सहायता न लेने वाली अल्पसंख्यक संस्थाओं—स्कूल आदि में प्रवेश-प्रक्रिया पर सरकार नियंत्रण नहीं कर सकती, पर व्यावसायिक शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार जरूरी निर्देश दे सकती है। - मुख्य न्यायाधीश बी.एन. किरपाल की अध्यक्षता वाली 11 जजों की संविधान पीठ ने यह अहम व्यवस्था गुरुवार को सेंट स्टीफेंस कालेज विवाद व सैकड़ों दूसरे मामलों का निपटारा करते हुए दी। अदालत ने कहा है कि सरकारी सहायता से चलने वाली अल्पसंख्यक शिक्षा-संस्थाएं प्रबंधन के मामले में सरकारी नियमों और निर्देशों की अनदेखी नहीं कर सकतीं। ये नियम-व्यवस्था में पारदर्शिता और स्तर की गुणवत्ता के मद्देनजर जरूरी हैं। अदालत ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थाएँ अनुच्छेद 30 (1) के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते वक्त अनुच्छेद 29 (2) के प्रावधानों का भी पालन करेंगी। जिनमें व्यवस्था है कि जाति, नस्ल और भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता। इस मामले में एक पहलू पर जजों के बीच मतभेद थे। मुख्य न्यायाधीश बी.एन. किरपाल, न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन, न्यायमूर्ति जी.बी. पटनायक, न्यायमूर्ति राजेंद्र बाबू, न्यायमूर्ति पी.वी. रेड्डी व न्यायमूर्ति अरिजित पसायत इस राय के थे कि सरकारी सहायता नहीं लेने वाली अल्पसंख्यक संस्थाओं को भी प्रवेश में मनमानी का अधिकार नहीं मिल सकता। जबकि न्यायमूर्ति एस.एन. वरियावा, न्यायमूर्ति वी.एन. खरे, न्यायमूर्ति एस.एस.एम. कादरी, न्यायमूर्ति रूमा पाल व न्यायमूर्ति अशोक भान इस मुद्दे पर अलग राय के थे कि सहायता न लेने वाली अल्पसंख्यक संस्थाओं के लिए भी सरकार प्रवेश व नियुक्ति के नियम बना सकती है। 11 जजों की संविधान पीठ ने उन्नीकृष्णन मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2002 00 101

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