Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 113
________________ इस अंक के लेखक-लेखिकाएँ 1.आचार्यश्री विद्यानन्द मुनिराज–भारत की यशस्वी श्रमण-परम्परा के उत्कृष्ट उत्तराधिकारी एवं अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोगी संत परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज वर्तमान मुनिसंघों में वरिष्ठतम हैं। इस अंक में प्रकाशित 'जगद्गुरु' शीर्षक आलेख आपकी पुण्य-लेखनी द्वारा प्रसूत है। ____ 2. (स्व.) डॉ. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य—जैनदर्शन एवं न्यायशास्त्र के प्रकाण्ड मनीषी तथा सिद्धहस्त लेखक डॉ. महेन्द्र कुमार जी सशरीर विद्यमान न होते हुए भी अपने कालजयीकृतित्व के माध्यम से चिरकाल तक भारतीय-मनीषा को दिग्दर्शन करते रहेंगे। इस अंक में प्रकाशित 'प्राकृत-अपभ्रंश शब्दों की अर्थवाचकता' शीर्षक-आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। 3. डॉ. राजाराम जैन—आप मगध विश्वविद्यालय में प्राकृत, अपभ्रंश के प्रोफेसर' पद से सेवानिवृत्त होकर श्री कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान के निदेशक' हैं। अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों, पाठ्यपुस्तकों एवं शोध-आलेखों के यशस्वी-लेखक भी हैं। आपको वर्ष 2000 का 'प्राकृतभाषा-विषयक' 'राष्ट्रपति सम्मान' समर्पित किया गया है। इस अंक में प्रकाशित 'भगवान् महावीर के व्यक्तित्व का दर्पण: वड्ढमाण-चरिउ' नामक आलेख के लेखक आप हैं। पत्राचार-पता—महाजन टोली नं. 2, आरा-802301 (बिहार) 4. सत्यदेव विद्यालंकार—भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं दर्शन के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर इन्दौर-निवासी श्री विद्यालंकार जी की उक्त क्षेत्रों में प्रामाणिक प्रतिष्ठा है। इस अंक में प्रकाशित 'जैनधर्म में राष्ट्रधर्म की क्षमता विद्यमान है' शीर्षक-आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। 5. विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्र सागर प्रचंडिया—आप जैनविद्या के क्षेत्र में सुपरिचित हस्ताक्षर हैं. तथा नियमित रूप से लेखनकार्य करते रहते हैं। इस अंक में प्रकाशित 'रत्नत्रय अष्टक' नामक हिन्दी कविता के रचयिता आप हैं। पत्राचार-पता-394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.) 6. डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल—आप ओरियंटल पेपर मिल्स, अमलाई में कार्मिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुये, जैनसमाज के अच्छे स्वाध्यायी विद्वान् हैं। इस अंक में प्रकाशित 'भगवान् महावीर की जन्मस्थली नालंदा कुण्डलपुर-आगमसम्मन नहीं' शीर्षक आलेख आपकी 'लेखनी से प्रसूत है। पत्राचार-पता—बी.-369, ओ.पी.एम. कालोनी, अमलाई-484117 (म.प्र.) ___7. डॉ. जानकी प्रसाद द्विवेदी— वर्ष 1997 के 'आचार्य उमास्वामी पुरस्कार' से सम्मानित डॉ. द्विवेदी सारनाथ (वाराणसी) स्थित तिब्बती शिक्षण संस्थान' में संस्कृत के 'आचार्य' पद पर कार्यरत हैं। कातंत्र-व्याकरण' के संबंध में आपके द्वारा किया गया शोधकार्य अद्वितीय है। इस अंक में प्रकाशित 'ब्राह्मण-श्रमणम् प्रयोग की सार्थकता' नामक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। स्थायी पता-एस.19/134, ए.सी.1, जदीद बाजार, नदेसर, वाराणसी कैण्ट-221002 (उ.प्र.) 8. डॉ. रमेशचंद जैन-आप भी जैनदर्शन के गवेषी-विद्वान् है। संप्रति आप जैन कॉलेज, बिजनौर (उ.प्र.) में संस्कृत एवं जैनदर्शन के विभागाध्यक्ष हैं। इस अंक में प्रकाशित 'वैदिक और जैन संन्यासी में उल्लिखित समताएँ' नामक आलेख आपके द्वारा लिखित है। स्थायी पता-जैन मंदिर के पास, बिजनौर-246701 (उ.प्र.) प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 00 111

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