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एन.सी.ई.आर.टी. के निदेशक प्रो. राजपूत जी ने बड़े ही सन्तुलन, सूझबूझ एवं दूरदर्शितापूर्ण नीति से यह कार्य सम्पन्न कराया है तथा यह प्रक्रिया आगे निरन्तर चालू रखने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है।
भाषाओं को बचाने का विश्व-अभियान भारत को शुरु करना चाहिए
नई दिल्ली, 29 अक्तूबर, जनसत्ता। भाषाएँ इस समय संकट में हैं। इसलिए जैसे पर्यावरण को बचाने के लिए विश्व अभियान सफलतापूर्वक चला है, वैसे ही मनुष्य की विविधता को सुनिश्चित करने के लिए भाषाओं को बचाने का एक विश्व-अभियान भी भारत को शुरू करना चाहिए। यह बात आज यहाँ महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति अशोक वाजपेयी ने कही। वे 21वीं सदी की वास्तविकता: भाषा, संस्कृति और टेक्नोलॉजी' विषय पर तीन दिवसीय सेमिनार के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हो रहे इस सेमिनार का आयोजन ‘महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय' और केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर' द्वारा साझा तौर पर किया गया है। - अपने स्वागत वक्तव्य में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भाषा का सच्चाई से क्या संबंध है। उन्होंने कहा कि भाषा सच्चाई पर हमारी पकड़ का सबसे विश्वसनीय माध्यम है। जो भाषा में सच नहीं है उसे अन्यथा सच मानने में कठिनाई होती है। भाषा सच्चाई को सिर्फ प्रकट ही नहीं करती बल्कि उसको बदलती और उसमें हमारी शिरकत को सुनिश्चित करती है। उद्घाटन समारोह के दौरान शैलेंद्र कुमार सिंह और एन.एच. इटैगी द्वारा संपादित पुस्तक 'लिंग्विस्टिक लैंडस्केपिंग इन इंडिया' का लोकार्पण प्रो. जी.एन. देवी ने किया।
पहले सत्र में हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रो. प्रोबल दासगुप्ता ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय भाषाओं के भविष्य को प्रभावित करनेवाली निर्णायक गतिविधियाँ अब ज्यादातर अंग्रेजी केंद्रित भारतीयों के बीच हो रही हैं. जिनके जीवन और कार्यों का भारतीय भाषाओं पर गहरा असर है। एक मरती हुई भाषा के रूप में त्रिनिडाड-भोजपुरी पर अपने अध्ययन के अनुभव का उल्लेख करते हुए पैगी मोहन ने कहा कि आज की हिंदी का संकट भी यही है कि भले ही उसकी भाषिक संरचना स्थिर और स्वस्थ हो मगर भाषिक सामाजिक संकेतक उसकी जीवंतता पर छाए खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं। आई.आई.टी. दिल्ली के प्रो. वागीश शुक्ला ने 'फ्री सोफ्टवेयर: ए कल्चर इंपरेटिव' विषय पर बोलते हुए कहा कि कुछ चीजें टेक्नोलॉजी थोप रही है। उन्होंने कहा कि सॉफ्टवेयर ही तय कर रहा है कि आप कैसे लिखें। यदि आप अलग तरह से लिखने की कोशिश करते हैं, तो कंप्यूटर उसे स्वीकार नहीं करता। वक्ताओं से सवाल-जवाब में कृष्णा सोबती और अन्विता अब्बी सहित कई प्रबुद्ध श्रोता शामिल हुए। सत्र की अध्यक्षता रुक्मिणी माया नायर ने की। ___ दूसरे सत्र में पुणे से आए प्रो. लक्ष्मण एम. खूबचंदानी ने कहा कि एक जमीनी परिप्रेक्ष्य से दक्षिण एशिया के भाषिक सांस्कृतिक परिदृश्य का जायजा लें, तो कई नामों से जानी
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
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