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अनुपात होगा, इसका फैसला राज्य सरकार आबादी के अनुपात और क्षेत्रीय - परिस्थितियों के आधार पर कर सकती है । अल्पसंख्यक छात्रों की कुल संख्या को भी फैसला करते वक्त ध्यान में रखना होगा ।
अल्पसंख्यक शिक्षा-संस्थाएँ अगर सरकार से आर्थिक सहायता नहीं लेतीं, तो स्टॉफ के बारे में अनुशासन-संबंधी नियम भी प्रबंधन बना सकता है। लेकिन शिक्षकों व प्रिंसिपल आदि की नियुक्ति करते वक्त ऐसा प्रबंधन राज्य सरकार के नियमों को मानेगा ।
कहा जा रहा है कि संविधान पीठ का फैसला शिक्षा क्षेत्र में 'मील का पत्थर' साबित होगा और सेवा की आड़ में मनमानी व मुनाफाखोरी करने की प्रवृत्ति पर अब प्रभावी अंकुश लगेगा। लेकिन जो अल्पसंख्यक - संस्थाएँ पारदर्शिता का ख्याल करेंगी उन्हें अपनी विशिष्टपहचान बरकरार रखने का पूरा अधिकार मिल गया है
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- ( 'जनसत्ता', पृ. 1 और 13, दिनांक 1.11.2002)
इक्ष्वाकुवंशी तीर्थंकर ऋषभदेव 'प्रथम ही तीर्थंकर रूप परमेश्वर कौ, वंश ही इक्ष्वाकु - अवतंस ही कहायौ है । वृषभ लाञ्छन पग धोरी रहे धींग जावे, धन्य मरुदेवी ताकी कुक्षी में आयौ है । रांजऋद्धि छोर करि भिच्छाचर भेस भये समता सन्तोष ग्यान केवल ही पायो है ।
नाभिरायजू को नन्द नमै उदय कहत गिरि शत्रुंजै
प्राकृतविद्या�अक्तूबर-दिसम्बर 2002
सुर-नर-वृन्द, है ।।'
सुहायो
- ( चौबीस जिन सवैया, 1 )
अर्थ : • भगवान् श्रीवृषभदेव प्रथम तीर्थंकर हैं। वह परमेश्वर के साक्षात् रूप हैं । भगवान् इक्ष्वाकुवंशी हैं। यह इक्ष्वाकु नाम समस्त लोकविश्रुत वंशावली में अलंकारभूत है । भगवान् चरण-तल में वृषभ का चिह्न शोभायमान है। माता मरुदेवी धन्य हैं, जिनकी कुक्षि में (गर्भ में) आदि जिनपरमेष्ठी ने निवास किया है। उन्होंने राजकीय लौकिक समृद्धि-सम्पदा का परित्याग कर स्वेच्छा से भिक्षाजीवी वेष को ( मुनिवृत्ति को ) धारण किया है। समता, सन्तोष और केवलज्ञान भगवान् ने प्राप्त किये हैं । श्री ऋषभदेव श्रीनाभिराय के नन्दन हैं— आनन्दवर्धन हैं, उन्हें सुर, नर नमस्कार करते हैं। श्रीशत्रुंजय तीर्थ शैल पर निवास करते हुए उदय नामक सुकवि ने भगवान् की स्तुति में यह पद्य लिखा है।
DO 103