Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 104
________________ प्रतिपादित व्यवस्था को उलट दिया और कहा कि अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाएँ भी प्रवेश की आड़ में छात्रों से कैपिटेशन फीस वसूल नहीं कर सकतीं। ____ अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में काफी समय से विचाराधीन था। मूल विवाद दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज में ईसाई छात्रों को प्रवेश में वरीयता देने के प्रकरण में शुरु हुआ था। मगर बाद में देश भर की दूसरी सैकड़ों याचिकाएँ भी इसी विवाद से जुड़ गई। सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्णय नौ जजों की संविधान पीठ के थे, सो संवैधानिक प्रावधानों की नए सिरे से व्याख्या के लिए 11 जजों वाली बड़ी संविधान पीठ बनी। मुख्य न्यायाधीश बी.एन. किरपाल के साथ इसमें न्यायमूर्ति जी.बी. पटनायक, न्यायमूर्ति वी.एन. खरे, न्यायमूर्ति एस. राजेंद्र बाबू, न्यायमूर्ति एस.एस.एस.एम. कादरी, न्यायमूर्ति रुमा पाल, न्यायमूर्ति पी.वी. रेड्डी, न्यायमूर्ति अशोक भान, न्यायमूर्ति एस.एन. वरियावा, न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन और न्यायमूर्ति अरिजित पसायत थे। __ अदालत ने व्यवस्था दी कि अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी पसंद की शिक्षा संस्थाएं स्थापित करने का मौलिक अधिकार तो है मगर ऐसी संस्था अगर सरकार से आर्थिक सहायता लेती है, तो सरकार उसके प्रबंधन की निगरानी कर सकती है। सरकारी सहायता से चलने वाली 'अल्पसंख्यक शिक्षा-संस्था न तो प्रवेश में मनमानी कर सकती है और न सरकारी नियम-कानूनों से ऊपर मानी जा सकती है। पर जो अल्पसंख्यक संस्था सरकार से सहायता नहीं लेती, उसके प्रबंधन में सरकार या विश्वविद्यालय को न्यूनतम हस्तक्षेप करना चाहिए। पर ऐसी संस्थाएँ भी छात्रों के प्रवेश में पारदर्शिता बरतेंगी। अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को प्रवेश में वरीयता देने की उन्हें छूट होगी पर कोई कसौटी उन्हें भी तय करनी ही होगी। संविधान पीठ ने अनुच्छेद 30 (1) को अनुच्छेद 29 (2) के साथ जोड़कर व्याख्या की। अनुच्छेद 29 (2) में प्रावधान है कि किसी के साथ जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। अल्पसंख्यक कौन है? इस सवाल की अदालत ने कोई नई व्याख्या नहीं की। अलबत्ता साफ किया कि राज्यों का पुर्नगठन भाषा के आधार पर हुआ था। अल्पसंख्यक धार्मिक और भाषाई दोनों आधार पर हो सकते हैं। पर किस राज्य में कौन इस श्रेणी में आएगा, यह राज्य के हिसाब से सरकार तय करेगी। सरकारी सहायता न लेने वाली अल्पसंख्यक शिक्षा-संस्थाओं को भी सर्वोच्च अदालत ने दो श्रेणियों में रखा है। एक जो पारंपरिक शिक्षा प्रदान करती है। उनमें प्रवेश प्रबंधन अपनी व्यवस्था से कर सकता है, मगर उसमें पारदर्शिता होनी चाहिए। दूसरे श्रेणी में व्यावसायिक शिक्षा देने वाली संस्थाएँ आएंगी जहाँ प्रवेश पूरी तरह प्रतिभा के आधार पर होंगे जिसके लिए राज्य सरकार या विश्वविद्यालय संयुक्त-प्रवेश-परीक्षा आयोजित करने को अधिकृत होंगे। सरकारी सहायता न लेने वाली अल्पसंख्यक-संस्थाएँ अपने वर्ग के छात्रों को प्रवेश में वरीयता दे सकती हैं पर उन्हें कुछ छात्र तो दूसरे वर्गों के भी लेने पड़ेंगे। दोनों में क्या 40 102 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002

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