Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 83
________________ महान् वैज्ञानिक और सच्चे देशभक्त डॉ. जगदीश चंद्र बसु -अशोक वशिष्ठ भारत के महान् संतों जैसे जैनधर्म के तीर्थंकर ऋषभदेव व भगवान् महावीर के उपदेशों को हमें पढ़ना चाहिए। आज उन्हें अपने जीवन में उतारने का सबसे ठीक समय आ पहुँचा है। क्योंकि जैनधर्म का तत्वज्ञान अनेकान्त (सापेक्ष्य पद्धति) पर आधारित है, और जैनधर्म का आहार अहिंसा पर प्रतिष्ठापित । जैनधर्म कोई पारस्परिक विचारों, ऐहिक व पारलौकिक मान्यताओं पर अन्ध श्रद्धा रखकर चलने वाला सम्प्रदाय नहीं है, वह मूलत: एक विशुद्ध वैज्ञानिक धर्म है। उसका विकास एवं प्रसार वैज्ञानिक-ढंग से हुआ है। क्योंकि जैनधर्म का भौतिकविज्ञान, और आत्मविद्या का क्रमिकअन्वेषण आधुनिक-विज्ञान के सिद्धान्तों से समानता रखता है। जैनधर्म ने विज्ञान के उन सभी प्रमुख-सिद्धान्तों का विस्तृत-वर्णन किया है. जैसेकि पदार्थविद्या, प्राणिशास्त्र, मनोविज्ञान और काल, गति, स्थिति, आकाश एवं तत्त्वानुसंधान । श्री जगदीश चन्द्र बसु ने वनस्पति में जीवन के अस्तित्व को सिद्ध कर जैनधर्म के पवित्र धर्मशास्त्र के वनस्पतिकायिक-जीवों के चेतनत्व को प्रमाणित किया जैनधर्म के सभी तीर्थंकर आर्य थे और जैनधर्म का पुराना नाम आर्यधर्म ही था। वैदिकधर्म, जैनधर्म व बुद्धधर्म, आर्यधर्म के ही अंग हैं। दर्शन एवं सिद्धान्तों के दृष्टिकोण से ये सब भिन्न-भिन्न हैं, परन्तु इन सबकी संस्कृति एवं पृष्ठभूमि एक समान है। -अनंतशयनम् आयंगर -(जैनधर्म का स्वरूप', प्रस्तावना, प्रकाशक अ.भा.श्वे. स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस भवन, नई दिल्ली) वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु का जन्म 30 नवम्बर, 1858 ई. को पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के 'मैनन सिंह' नामक शहर में हुआ। उनके पिता का नाम भगवान चंद्र बसु था और वे 'डिप्टी मैजिस्ट्रेट' थे। वे उच्चशिक्षा-प्राप्त कुशल अफसर होने के साथ-साथ सहृदय तथा जनसेवक भी थे। वे अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। वह बड़े लाड़-प्यार और सुख-सुविधाओं के बीच रहकर पले। जगदीश चंद्र को बचपन से ही प्रकृति से बहुत लगाव था, इसलिए उन्होंने प्रकृति के अध्ययन में विशेष-रुचि ली। जगदीश चंद्र की प्रारम्भिक शिक्षा फरीदपुर की बांग्ला पाठशाला में हुई, वहाँ पाँच वर्ष तक पढ़े। आगे की पढ़ाई उन्होंने कोलकाता के सेंट जेवियर स्कूल में की। यहाँ जिस प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 00.81

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