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वनस्पतियों द्वारा त्याज्य-वायु मानव व प्राणियों के लिये ग्राह्य-प्राणवायु है। पर्यावरण का संतुलन इसी अन्योन्याश्रय-सिद्धान्त पर टिका हुआ है। 5. जैन-संस्कृति के प्राण तीर्थक्षेत्र, मंदिर तथा पर्यावरण :
__ समस्त जैनतीर्थ, अतिशय और सिद्धक्षेत्र (निर्वाण-क्षेत्र) हरे भरे वृक्षों से युक्त पर्वत शिखरों, नदियों के तीरों, बड़े जलाशयों, झीलों, आदि पर अवस्थित हैं। चाहे वह सम्मेदशिखर की पावन निर्वाण-भूमि हो या गिरिनार पर्वत, चाहे श्रवणबेल्गोला की विन्ध्यगिरि व चन्द्रगिरि की मनोरम-उपत्यकायें हों या राजस्थान के माउंट आबू के जैन मंदिर, सभी प्रकृति की गोद में स्थित हैं और सभी प्रदूषणों से मुक्त हैं।
बुन्देलखण्ड के अतिशयक्षेत्र श्री देवगढ़, कुण्डलपुर, सिद्धक्षेत्र सोनागिरि, रेशंदीगिरि आदि हों या गुजरात का शत्रुजय-क्षेत्र पर्वत-मालाओं से घिरे शुद्ध-पर्यावरण से युक्त हैं। ___अतीत-काल में सभी जैन-मंदिर उद्यानों या सरोवरों से युक्त बगीचों में हुआ करते थे। इसी प्रकार श्रमणों की तपस्थली निर्जन एवं घने वन या पर्वत की गुफाएँ हुआ करती थीं; क्योंकि वे जन-कोलाहल (ध्वनि प्रदूषण) से रहित, प्राणवायु से घनीभूत-वातावरणवाले स्थान होते थे, जो ध्यान और समाधि के लिये बड़े सहायक होते हैं।
आज महानगर-संस्कृति में हमारे जैन-मंदिर बस्तियों के अंदर ही बनने लगे हैं, जहाँ उद्यानमय-परिवेष नहीं रह गया है। फिर भी उन मंदरों के सेवक या भृत्य, माली या बागवान कहलाते हैं। जो इस तथ्य के द्योतक हैं कि ध्यान और उपासना के केन्द्र, ये जैन-मंदिर पहले उद्यानों से घिरे होते थे, जो वायु, जल, ध्वनि, आदि प्रदूषणों से रहित हुआ करते थे। इसी रहस्य को एक कवि ने छंदोबद्ध करने का प्रयास किया है जो द्रष्टव्य है . जो वृक्षों से पूर्ण जैन, पर्वत तीर्थों पर थी पर्याप्त,
जहाँ साधनारत रहते थे, मुक्तिप्राप्ति-हित मुनिवर-लोग।
प्राणवायु की शुद्ध-प्राप्ति ही, मुख्य-सहायक साधक योग।।' जैन-तीर्थों का यह वैज्ञानिकरूप पर्यावरण से जुड़ा हुआ है। प्राकृतिक सुषमा से युक्त, स्वच्छ शांत-वातावरण में ये जैन-तीर्थ अध्यात्म के केन्द्र हैं, जो प्राणवायु के भंडार हैं। इसके पीछे वृक्षों, वनों, उद्यानों के संवर्धन और रक्षा का भाव ही विद्यमान है। वहाँ ग्रीष्मकाल में भी शीतल आर्द्र वायु बहती रहती है, जो सूर्य की तपन को कम कर देती है। इसीप्रकार पर्यावरण-संरक्षण में इन तीर्थों की एक महत्त्वपूर्ण-भूमिका है। 6. अहिंसा और पर्यावरण : ____ अहिंसा, पर्यावरण के संरक्षण का मूल-आधार है। अहिंसक आचार-संहिता द्वारा, हम संसार के जीवों की रक्षा करके पर्यावरण को पूर्णत: संतुलित रख सकते हैं। अहिंसा जैनधर्म का प्राण है।
श्रावक की भूमिका में भले ही आरंभी, और विरोधी-हिंसा त्याज्य नहीं है; परन्तु वह
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002