Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 82
________________ साधक होता द्रष्टा-जाता -दिलीप धींग सुख में मद से नहीं लहराता। दु:ख में चलित नहीं हो पाता। परम-पराक्रम और समता से, आत्मदेव को ध्याता जाता। साधक होता..... ..... ..... ।। 1।। लोभ-क्रोध आए आने दो। माया-मान के भाव होने दो। असंपृक्त बन देखने वाला, कषायों से मुक्ति पाता। साधक होता..... ..... ..... ।। 2 ।। दुर्भाव होते पर-भाव। समभाव है आत्म-स्वभाव। स्वभाव में सुस्थिर होकर, बैठा-बैठा बढ़ता जाता। साधक होता......... ..... ।। 3 ।। समता-रस की प्यास चाहिये। पीने का अभ्यास चाहिए एक बार चख लेनेवाला, खुद पीता औरों को पिलाता। साधक होता..... ..... ..... ।। 4।। स्थान हो कोई, समय हो कैसा । परिवेश चाहे हो जैसा। द्रव्य, क्षेत्र और काल घटक पर, प्रशस्त-भाव का ध्वज लहराता। साधक होता द्रष्टा-ज्ञाता।। 51 * 0080 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002

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