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साधक होता द्रष्टा-जाता
-दिलीप धींग
सुख में मद से नहीं लहराता। दु:ख में चलित नहीं हो पाता। परम-पराक्रम और समता से, आत्मदेव को ध्याता जाता।
साधक होता..... ..... ..... ।। 1।। लोभ-क्रोध आए आने दो। माया-मान के भाव होने दो। असंपृक्त बन देखने वाला, कषायों से मुक्ति पाता। साधक होता..... ..... ..... ।। 2 ।।
दुर्भाव होते पर-भाव। समभाव है आत्म-स्वभाव। स्वभाव में सुस्थिर होकर, बैठा-बैठा बढ़ता जाता।
साधक होता......... ..... ।। 3 ।। समता-रस की प्यास चाहिये। पीने का अभ्यास चाहिए एक बार चख लेनेवाला, खुद पीता औरों को पिलाता। साधक होता..... ..... ..... ।। 4।।
स्थान हो कोई, समय हो कैसा । परिवेश चाहे हो जैसा। द्रव्य, क्षेत्र और काल घटक पर, प्रशस्त-भाव का ध्वज लहराता। साधक होता द्रष्टा-ज्ञाता।। 51
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002