Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ राज्य के निर्वाचन-प्रतिनिधि नियुक्त किये गये थे। गंगवाल साहब ने 1944 में सर्वप्रथम सत्ता में प्रवेश किया, जब आप इन्दोर राज्य विधानसभा में जनता की ओर से निर्विरोध-प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। नवम्बर 1947 में होल्कर-नरेश द्वारा उत्तरदायित्वपूर्ण-शासन प्रदान किये जाने पर मंत्री बनाये गये। 1948 में मध्य-भारत के निर्माण पर प्रान्त के प्रथम मंत्री-मण्डल में 'खाद्यमंत्री' के रूप में सम्मिलित हुए। 1951-52 में भारत के प्रथम आम-चुनाव में धारा-सभा-हेतु 'बागली' क्षेत्र से निर्वाचित होकर मध्यभारत के मुख्यमंत्री' का पद संभाला। अप्रैल 55 तक वे मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद श्री तख्तमल जैन के मुख्यमंत्री चुने जाने पर आप कांग्रेस विधानदल के उपनेता तथा वित्तमंत्री बनाये गये। 1956 में नवीन मध्यप्रदेश बनने पर पं. रविशंकर शुक्ल के मंत्रिमण्डल में वित्तमंत्री, 1956 में कैलाशनाथ काटजू के मंत्री मण्डल में भी वित्तमंत्री और 1962 में श्री भगवंत राव मण्डलोई के मंत्रिमण्डल में भी वित्तमंत्री रहे। पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र के मुख्यमंत्री बनने पर भी उसमें आप वित्तमंत्री बनाये गये। इसका मूलकारण यह था कि जैसे आप अपने जीवन में मितव्ययी थे, वैसे ही शासन में भी थे। गंगवाल सा. के मितव्ययी स्वभाव के सन्दर्भ में उनके पुत्र श्री निर्मल गंगवाल ने लिखा है— “हम जिस भी सरकारी बंगले में रहते, क्या मजाल है कि कहीं भी बिजली के बल्ब फालतू जलें। इसलिए बिजली और टेलीफोन का बिल पूरे मंत्री-परिषद् की अपेक्षा सबसे कम आता था। कई बार पिताजी स्वयं उठकर फालतू जलती लाईट बंद करते। पिक्चर आदि जाने के लिए भोपाली तांगे में जाते थे, गाड़ी में नहीं। इसी कारण आवंटित पेट्रोल भी हर महीने वापस होता था। कभी-कभी स्वयं पत्र लिखते, तो आनेवाले लिफाफे को खोलकर, पीछे की तरफ में पत्र लिखते।..... एक होलडाल और एक सूटकेस ही हमने उनके पास जीवनभर देखा।... कभी हमने उन्हें साबुन का इस्तेमाल करते नहीं देखा, स्नान भी तीन या चार लोटे पानी में कर लेते। पानी के उपयोग पर बड़ी पाबन्दी थी।... इस सबके बावजूद उनकी काया कंचन थी।' ____ होल्कर नरेश द्वारा राज्य में उत्तरदायित्वपूर्ण शासन घोषित करने के समय से लगातार मध्यभारत के निर्माण तथा विलय और नवीन मध्यप्रदेश को साकाररूप प्रदान करने की सुखद-बेला में 'यत्र-तत्र सर्वत्र प्रशासक' गंगवाल जी की सुष्टपुष्ट-छाप विशेषरूप से दृष्टिगोचर होती है। गंगवाल जी के करीबी प्रसिद्ध पत्रकार श्री मायाराम सुरजन ने गंगवाल जी की नि:स्पृहता के सन्दर्भ में जो संस्मरण (दशबन्धु, 15/10/87) लिखा है, वह सचमुच अनुकरणीय है। संस्मरण का सारांश यह है कि 1952 में जब बाबू तख्तमल जैन चुनाव हार गये. श्री जैन मध्यभारत के मुख्यमंत्री थे और कुशल मुख्यमंत्रियों में उनकी गणना होती थी, तब नेहरू जी के करीबी होने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री 1034 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116