Book Title: Prakrit Vidya 2002 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 62
________________ दिखलाया गया है। इन दोनों तीर्थंकरों के बीच में तथा दोनों ओर तीन बैठी हुई जिन-आकृतियाँ पद्मासन- मुद्रा में दिखाई गई हैं। इन मूर्तियों के सिर पर छत्र है। ये लघु-आकृतियाँ कलात्मक नहीं है; किन्तु खड़ी हुई तीर्थंकरों की मूर्तियों में शरीर को सुगठित दिखलाया गया है। ये कमल-पुष्प पर अलग-अलग खड़ी हैं। नीचे चार सिंहों का अंकन है। इनके सिर पूरी तरह खण्डित हैं। यह मूर्ति - खण्ड 'माजरा' ग्राम से प्राप्त हुआ है, जो दसवीं ती का है। यह मूर्ति अब जैन - मन्दिर रोहतक में देखी जा सकती है। एक अन्य मूर्ति-खण्ड में तीर्थंकर मूर्ति के दाहिने खण्डित-भाग पर जिन को खड़े हुए दिखाया गया है (फलक-4)। सिर के केश घुंघराले हैं। कान कंधे तक लम्बे दिखाये गये हैं । इसमें मुख खण्डित है तथा भुजाएँ और उदरभाग नाभि से नीचे टूट गया है। यह मूर्ति जैन - मन्दिर रोहतक में है, जो कला की दृष्टि से दसवीं शती की है। माजरा (बोहर) से ही खण्डित तीर्थकर - मूर्ति का बाँया भाग प्राप्त हुआ है ( फलक- 5)। इस मूर्ति में कई जिनों को दिखलाया गया है। इस खंडित भाग पर एक जिन के घुटनों से नीचे के पैर सुरक्षित हैं, जिसके दोनों ओर उपासिकाओं को दिखाया गया है। उससे नीचे स्तम्भों से घिरे भाग में एक जिन-आकृति आसन मुद्रा में बैठी है। जिन के ऊपर छत्र है। बायें स्तम्भ के बाहर एक उपासिका खड़ी है। यह मूर्ति - खंड भी दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। कला की दृष्टि से इस प्रतिमा को दसवीं- ग्यारहवीं शती में रखा जा सकता है । यह मूर्ति - खंड भी रोहतक जैन मन्दिर में रखा हुआ है। उल्लेखनीय है कि लगभग एक शताब्दी पूर्व रोजर्स " ने कुछ बहुत सुन्दर जैन- मूर्तियों को रोहतक के पास अस्थल - जोगियों के नाथ सम्प्रदाय के मठ में देखा था तथा उन्हें प्रकाशित किया था। बी.सी. भट्टाचार्य | 2 ने 1939 ई. में पार्श्वनाथ की एक स्थानक - मूर्ति, जो जोगियों के मठ में है, का उल्लेख किया था। 1959 ई. में यज्ञदत्त शर्मा ने भी अस्थल बोहर के मठ में स्थित कुछ ब्राह्मण और जैन - मूर्तियों का उल्लेख किया था। बाद में उमाकान्त पी. शाह. 14 एम.ए. ढाकी 15 तथा मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी " ने भी रोहतक की जैन - प्रतिमाओं का उल्लेख अपने शोधकार्यों में किये। किन्तु किसी ने भी इस मूर्ति - - सम्पदा का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत नहीं किया । देवेन्द्र हाण्डा'" ने अवश्य ही रोहतक की जैन- मूर्तियों पर एक विस्तृत शोध- निबन्ध लिखा । जहाँ तक जैन-साहित्य में रोहतक के विवरण का सम्बन्ध है, रोहतक का विपाकसूत्र' में उल्लेख मिलता है। जैनधर्म की श्वेताम्बर - परम्परा के अनुसार 'विपाकसूत्र' जैन साहित्य के बारह अंगों में से ग्यारहवाँ अंग है। आर. एन. मेहता " विपाकसूत्र को नौवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की रचना मानते हैं। विपाकसूत्र का कथन है कि बेसमणदत्त . (वैस्रमणदत्त ) तथा पूसनन्दी (पुष्यनन्दी) रोहिदिय (रोहतक) से शासन करते थे ।" इसी ग्रंथ में रोहिद (रोहतक) के पृथव्यावतंश उद्यान में स्थित धरण - यक्ष के नन्दी का उल्लेख 0060 प्राकृतविद्या+अक्तूबर-दिसम्बर 2002

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