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कहा गया है कि वह अपने शिष्य आनन्द के साथ हस्तिनापुर से चलकर महानगर, सरुधन, ब्राह्मणग्राम तथा कालनगर होते हुए रोहितक पहुँचे। उन्होंने रोहतक में यक्ष चक्रपाणि से वार्तालाप किया। इसी में जीवक कुमार भृत्य की यात्रा का भी वर्णन है, जो तक्षशिला से भदरानकर, उदुम्बर तथा रोहतक होते हुए मथुरा गया था। महामयूरी' (चौथी शताब्दी) के अनुसार स्कन्द (कार्तिकेय) रोहतक के तथा कपिल बहुधान्यक के यक्ष थे। इसी समय के अन्य प्रमुख ग्रन्थ दिव्यावदान के अनुसार रोहतक एक महानगर था, जो 12 योजन लम्बा तथा 7 योजन चौड़ा था और वह सात परकोटों में आबंटित था, जिसमें 62 द्वार थे और यहाँ सहस्रों की संख्या में मकान, चौड़ी सड़कें, बाजार और दुकाने थीं।
वर्तमान रोहतक नगर और उसके समीपस्थ क्षेत्र में कई प्राचीन टीले विद्यमान हैं। ये प्राचीनकाल में रोहतक से ही जुड़े रहे होंगे, परन्तु अब उनका अलग अस्तित्त्व है। यह स्थल निम्नलिखित हैं- 1. खोखरकोट, 2. लालपुर तथा रामलआला 3. अस्थल बोहर तथा 4. माजरा (बोहर)। ग्रामीणों द्वारा की गई खुदाई से माजरा (बोहर) टीले से प्राचीन तांबे और चांदी के सिक्के, जैन तथा हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ आदि मिली हैं। हाल ही में यहाँ से पार्श्वनाथ की दो प्रतिमाएँ एवं कुछ प्रतिमाखण्ड प्राप्त हुए हैं। ये प्रतिमाएँ यहाँ प्रथम बार प्रकाशित की जा रही हैं।
- जैनधर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की इन प्रतिमाओं में उन्हें स्थानक-मुद्रा (कायोत्सर्ग-मुद्रा) में खड़े दिखलाया गया है। प्रथम मूर्ति (फलक-1) का माप 69x26 से. मी. है। तीर्थंकर कमल-पुष्प पर खड़े हैं। वह पूर्णतया नग्न-अवस्था में हैं। इस प्रकार यह प्रतिमा जैनधर्म के दिगम्बर-सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। मस्तक के पीछे सात फनवाले सर्प का चित्रण है, जो पार्श्वनाथ का लांछन है। सर्पफनों के ऊपर छत्र है, जिसके दोनों ओर सवार-सहित हाथी घट से तीर्थंकर का जल से अभिषेक कर रहे हैं। उससे नीचे दोनों ओर पुष्पमाला लिये स्त्रियाँ खड़ी हैं। उससे नीचे दोनों ओर सिंहमुख तथा शार्दूल का चित्रण है। यह सिंहासन का प्रतीक है। इससे नीचे बाईं ओर एक पुरुष तथा दायीं ओर एक स्त्री त्रिभंग-मुद्रा में कमल-पुष्प लिए खड़ी है। स्त्री का सिर खण्डित है। आधार पर बाईं ओर एक छोटी-सी आकृति उपासक की बनाई गई है, जो हाथ जोड़े बैठा है। मूर्ति के आधार पर दो पंक्तियों का लघु-लेख है। इसमें संवत् 1016 का उल्लेख है। लिपि के आधार पर यह लेख 10वीं शताब्दी का है। ____ पार्श्वनाथ की दूसरी प्रतिमा (फलक-2) भी इसी ग्राम से मिली है, जिसका आकार 715x26 से.मी. है। यह प्रतिमा भी उपरोक्त-मूर्ति से साम्य रखती है। मूर्ति का दाँया हाथ टूटा हुआ है। नीचे स्त्री और पुरुष के चेहरे खण्डित हुए हैं। नीचे आधार पर दो पंक्तियों का अभिलेख है। आधार का आकार त्रिरथ है। लिपि ग्याहरवीं शताब्दी से साम्य रखती है।
एक खण्डित जैन-मूर्ति (फलक-3) में दो तीर्थंकरों को स्थानक-मुद्रा में पास-पास खड़े
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
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